Ud Ja Re Panchhi
चल उड जा रे पंछी, के अब ये देस हुआ बेगाना
चल उड़ जा रे पंछी की अब ये देस हुआ बेगाना
तू ने तिनका तिनका चुनकर नगरी एक बसाई
बारीश में तेरी भीगी पाख़े, धूप में गर्मी खाई
ग़म ना कर जो तेरी मेहनत तेरे काम ना आई
अच्छा है कुछ ले जाने से दे कर ही कुछ जाना
भूल जा अब वो मस्त हवा, वो उड़ना डाली डाली
जग की आँख का कांटा बन गई चाल तेरी मतवाली
कौन भला उस बाग को पूछे, हो ना जिसका माली
तेरी किस्मत में लिखा है, जीते जी मर जाना
रोते हैं वो पंख पखेरू, साथ तेरे जो खेले
जिनके साथ लगाये तू ने अरमानों के मेले
भीगी अँखियों से ही उनकी आज दुआएं ले ले
किसको पता अब इस नगरी में कब हो तेरा आना