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तुम सुनियो सन्त सुजान – कबीर के दोहे हिंदी में अर्थ

कबीर सिंह
तुम सुनियो सन्त सुजान,  गर्व नहीं करना रे।।
चार दिनों का रैन बसेरा, आखिर तोकु मरना है।।
तूँ जाने मेरी न्यू ए निभेगी।
हरदम लेखा भरना है।।
खाले पिले विलसले रे हंसा।
जोड़ जोड़ नहीं धरना रे।।
दास गरीब सकल में साहिब।
नहीं किसी से अड़ना है।।
गरीबदास मन धरै न हंसा।
अधर धार पंथ कबीरा रे।।
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