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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तूं करले गुरु नै वकील, मुकदमा भारी सै।
उस दिन की तुम करो कमाई,
जब पकड़ेंगे चार सिपाही।
तेरी कोई न देगा गवाही।
तनै देखी ना तहसील ।।
यमपुर का टिकट कटेगा रे,
सारा कुनबा दूर हटेगा रे।
तेरे पास न कोई जुटेगा रे,
तेरी कौन करे तामील।।
सारा कुनबा दूर हटेगा रे।
तेरे पास न कोई जुटेगा रे,
तेरी कौन करे तामील।।
मन नाम सुमर नादानी रे,
तेरी दो पल की जिंदगानी रे।
तूं क्यूँ करता मनमानी रे,
तेरी चालै नहीं दलील।।
तेरी दो पल की जिंदगानी रे।
तूं क्यूँ करता मनमानी रे,
तेरी चालै नहीं दलील।।
झूठे की बात न चाले रे,
साँचा की पांत न हालै रे।
वहां एक ही एक निहारे रे,
वहां चिपटें लाखों भील।।
साँचा की पांत न हालै रे।
वहां एक ही एक निहारे रे,
वहां चिपटें लाखों भील।।
नर जो तूं पाप करेगा रे,
तूं अपने आप भरेगा रे।
बिन भजन के डूब मरेगा रे,
चाहे करले जतन हज़ार।।
तूं अपने आप भरेगा रे।
बिन भजन के डूब मरेगा रे,
चाहे करले जतन हज़ार।।