Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तूं ही तूं ही याद मोहे, आवै रे दर्द में।
लख चौरासी भटकत-२,
मार पड़े भग जावै रे दर्द में।।
लख चौरासी भटकत-२,
मार पड़े भग जावै रे दर्द में।।
सुख सम्पत्ती का सब कोय साथी,
दुःख में निकट नहीं आवै रे दर्द में।।
दुःख में निकट नहीं आवै रे दर्द में।।
भाई बन्धु कुटुंब कबीला,
भीड़ पड़ी भग जावै रे दर्द में।।
भीड़ पड़ी भग जावै रे दर्द में।।
शाह हुसैन फकीर साँई का।
हर्ष निरख गुण गावै रे दर्द में।।
हर्ष निरख गुण गावै रे दर्द में।।