बहुमत का सत्य
किसी वृक्ष पर एक उल्लू बैठा हुआ था। अचानक एक हंस उड़ता हुआ उस वृक्ष पर आ बैठा। हंस स्वाभाविक रूप में बोला-उफ् ! कितनी गरमी है। सूर्य आज बहुत प्रचण्ड रूप में चमक रहे हैं। – उल्लू बोला’सूर्य ? सूर्य कहाँ है? इस समय। रमा है यह तो ठीक किंतु यह गरमी तो अन्धकार। बढ़ जाने से हुआ करती है।
हंस ने समझाने का प्रयत्न किया-सूर्य आकाश में रहते हैं। उनका प्रकाश संसार में फैलता है, तब गरमी बढ़ती है। सूर्य का प्रकाश ही गरमी है।
उल्लू हँसा – तुमने प्रकाश नामक एक और नयी वस्त बतायी। तम चन्द्रमा की बात करते तो वह मैं समझ सकता था। देखो, तुम्हें किसी ने बहका दिया है। सूर्य या प्रकाश नाम की वस्तुओं की संसार में कोई सत्ता ही नहीं है। हंस ने उल्लू को समझाने का जितना प्रयत्न किया उल्लू का हठ उतना बढ़ता गया। अन्त में उल्लू ने कहा -यद्यपि इस समय उड़ने में मुझे बहुत कष्ट होगा, फिर भी मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। चलो, वन के भीतर सघन वृक्षों के बीच जो भारी वट वृक्ष है, उस पर मेरे सैकड़ों बुद्धिमान् जाति-भाई हैं। उनसे निर्णय करा लो।
हंस ने उल्लू की बात स्वीकार कर ली। वे दोनों उल्लुओं के समुदाय में पहुँचे। उस उल्लू ने कहा—यह हंस कहता है कि आकाश में इस समय सूर्य चमक रहा है। उसका प्रकाश संसार में फैलता है। वह प्रकाश उष्ण होता है।
सारे उल्लू हँस पड़े, फिर चिल्लाकर बोले- क्या वाहियात बात है, न सूर्य की कोई सत्ता है, न प्रकाश की।
सारे उल्लू हँस पड़े, फिर चिल्लाकर बोले- क्या वाहियात बात है, न सूर्य की कोई सत्ता है, न प्रकाश की।
इस मूर्ख हंस के साथ तुम तो मूर्ख मत बनो। सब उल्लू उस हंस को मारने झपटे। कुशल इतनी थी कि उस समय दिन था। उल्लुओं को वृक्षों के अन्धकार से बाहर कुछ दीख नहीं सकता था। हंस को उड़कर अपनी रक्षा करने में कठिनाई नहीं हुई। उसने उड़ते-उड़ते अपने-आप कहा-बहुमत सत्य को असत्य तो कर नहीं सकता, किंतु उल्लुओं का जहाँ बहुमत हो, वहाँ किसी समझदार को सत्य का प्रतिपादन करने में सफलता मिलनी कठिन ही है। चाहे वह सत्य का नाक्षात्कार कर चुका हो।