सच्चाई
सच की नौका पार है, झूँठ की है मझदार।
एक सत्य के वास्ते, मिल जाये करतार॥
एक हिन्दू किसी मुस्लिम साहूकार से एक सौ पच्चीस रुपये उधार मागने आया। वह साहूकार उसकी हैसियत को जानता था कि जमीदार है, इसके पास पच्चीस बीघे जमीन, दो मकान, दो जोड़ी बैल, एक गाड़ी और तीन भेंस हैं। जमीदार ने उसे रुपये दे दिये और दो वर्ष का बयनामा लिखवा लिया। दो वर्ष का समय बीत गया तो सांहूकार ने जमीदार से तकाजा किया। जमीदार ने कहा मेरी जमीन निकल गई, नकद रुपया घर में नहीं है। मैं तुम्हें रूपया कहाँ से दूँ?
साहूकार ने कहा -तुम अपना कागज बदल दो क्योंकि पुराने कागज की अवधि समाप्त हो चुकी है। जमीदार ने कहा कि गिरधारी लाल के यहाँ पाँच आने रोज़ की मैं नौकरी करता हूँ। मुझे वहाँ जाने में देर हो जायेगी, जिससे वह मेरा वेतन काट लेगा जिससे मेरे बच्चे भूखे मर जायेंगे। साहूकार ने कहा- चिन्ता मत करो मैं कागज के दाम, कागज की लिखाई नहीं लूँगा। तुम्हारा एक दिन का वेतन भी में दे दूँगा। तुम कल आकर कागज को बदलवा लो । इस पर जमाीदार ने कहा कि मैं ऐसे झगड़े में नहीं पड़ता और चल पड़ा।
साहूकार ने विवश होकर जमीदार पर नालिश कर दी। तीन रुपये स्टाम्प के, बीस रुपये वकील के, आठ आने का वकालत नामा, दो रुपये अर्जी लिखवाई, तीन रुपये सम्मन, आठ रुपये गवाहों की खुराक, दो आने का बटर पेपर, आठ आने की पूरियाँ, दो पैसे के पान, एक पैसा पानी पाण्डे को और साहूकार ने अपने कारिन्दे से कहा- मुंशी जी! पाँच रुपये और लिख देना, ये पेशकार को दिये गये हैं।
मुकदमा चला, साहूकार की ओर से काल का प्रसाद नाम का गवाह पेश हुआ। मजिस्ट्रेट ने पछा- कि कया इस आदमी ने तुम्हारी सामने रुपये लिए थे। उसका उत्तर हाँ में था। मुंसिफ ने पूछा कि धन रुपयों में था या नोट थे। गवाह ने उत्तर दिया- दस-दस के बारह नोट और पाँच रुपये थे। मुंसिफ ने फिर पूछा -इस बात को कितना समय हुआ है। गवाह ने उत्तर दिया -लगभग पाँच वर्ष ।
मुंसिफ ने गवाह से फिर पूछा -उस समय कितने बजे थे। गवाह ने उत्तर दिया -दिन के चार बजकर तीन मिनट हुए थे। मुंसिफ ने फिर पूछा- रुपये कौन से मकान में दिये गये थे। खाँ साहब के कमरे में । वह अपनी गद्दी पर उत्तर को मुँह करके बैठे थे और आसामी का मुँह दक्षिण दिशा की ओर था। मैं खाँ साहब की दांई ओर पूर्व को बैठा था और मेरा मुख पश्चिम की ओर था।
इस महोदय से यह तो पूछो कि कल चार बजकर तीन मिनट पर तुम्हारा मुँह किधर था? प्रश्न को सुनते ही गड़बड़ा जायेंगे। इनको अभी तो यह भी पता नहीं कि कल चार बजकर तीन मिनट पर हम कहाँ थे और हमारा मुख किस ओर था? यह मामूली गवाह नहीं है। यह सिखाकर तैयार किया गया है। मुकदमे में यह कैसे भूल कर सकता है? सब गवाह ठीक ठाक गुजर गये। अब एक अब्दुल्ला नाम का गवाह पेश हुआ। अब्दुल्ला से पूछा गया कि इस मुकदमे के बारे में तुम क्या जानते हो?
उसने उत्तर दिया कि हरसाय एक कागज पट्टे हेतु लाया था। इस खेत को लेकर कागज मियां को दे दिया। साहूकार मिया ने कहा कि कागज को रख जाओ। पट्टा कल लिखा जायेगा तथा खेत तुमको दे दिया जायेगा । फिर यह कई बार आया परन्तु मियां साहूकार ने खेत नहीं दिया। पट्टा भी नहीं दिखाया और स्टाम्प भी वापिस नहीं किया। उस कागज पर मियाँ साहूकार ने पटवारी से हरसाय के नाम का झूठा दस्तावेज लिखवा लिया।
यह सुनकर मुंसिफ हंस पड़ा और खाँ साहब से बोला कि देखो तुम्हारी बिरादरी का एक मुसलमान क्या कह रहा है? तुम इतने बड़े आदमी होकर भी जाली दस्तावेज लिखवा लिया करते हो? खाँ साहब ने उत्तर दिया कि जनाब! यदि अब्दुल कुरान शरीफ हाथ में लेकर यह बात कह दे तो में अपना मुकदमा वापिस ले लूँगा तथा हुजूर मुझ पर जो भी जुर्माना करेंगे उसे भी मैं देने को तैयार हूँ मुंसिफ ने अब्दुल्ला से कहा कि तुम कुरान शरीफ उठाकर कहो तो हम तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेंगे।
अब्दुल्ला ने उत्तर दिया कि पहले मुझे कुरान शरीफ दिखलाओ। मुंसिफ ने अपने चपरासी से कुरान शरीफ मंगवा ली। यह कुरान शरीफ अक्षरों में छपी हुई गुटके के रूप में थी। उसे देखकर अब्दुल्ला बोला कि क्या यही कुरान है? ऐसी तो में सैकड़ों कुरान उठा लूँ। यह सुनकर सब लोग हँस पड़े। अब्दुल्ला बेईमानी से नहीं डरता और झूँठ पर कुरान उठाने से भी नहीं डरता।
मुकदमें में वकीलों की बहस होने लगी । परिणाम स्वरूप हरसाय पर डिगरी हो गई। हरसहाय किसान ने डिगरी से पहले ही अपने दो बैल, एक गाड़ी और दो मकान बेच डाले तथा आप नागा बनकर बैठ गया। खाँ साहब डिगरी को लेकर अपने घर में बैठे रह गये।