Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तोरा मन दर्पण कहलाए।
भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए।।
मन ही देवता मन ही ईश्वर, मन से बड़ा ना कोय।
मन उजियारा जब जब फैले जग उजियारा होय।।
इस उजले दर्पण पर प्राणी, धूल न जमने पाए।
सुख की कलियां दुःख के कांटे, मन सब का आधार।।
मन से कोई बात छुपे ना, मन के हैं हजार।
जग से चाहे भाग ले कोई, मन से भाग न पाए।।
तन की दौलत ढलती छाया, मन का धन अनमोल।
तन के कारण मन के धन को, मिट्टी में ना रौंद।।
मन की कद्र भुलाने वाला, हीरा जन्म गंवाए।।