निर्विचार समाधि और समर्पण
उत्थान पाने के लिए निर्विचार समाधि में होना आवश्यक है,बिना इसके उत्थान नहीं हो सकता है।इसके बिना चाहे आप कोई भी योजना बना लें,जो चाहें करें,यह कार्यान्वित नहीं होगा। सहज योग में यह सहज ही कार्यान्वित होता
है।आप जागृत हो जॉय फिर देखना सहज किस प्रकार आपकी सहायता करता है।निर्विचार समाधि एक सुन्दर स्थिति है जो कि आपको पाना है,इस जीवन को नाटक मानकर लोगों को साक्षी भाव में देखते हुये आनंद की अनुभूति के साथ उत्थान की ओर अग्रसर होना है ।
2- समर्ण का अर्थ है परमात्मा के साम्राज्य में स्थापित हो जाना-
समर्पण का अर्थ यह नहीं है कि आप अपने बच्चों और घर को त्याग करें वल्कि अहं एवं वन्धनों का त्याग करें ।समर्पण से आपके अन्दर एक ऎसी स्थिति विकसित होती है जिसमें आन्तरिक रूप में आप सन्यासी बन जाते हैं।समर्पण का अर्थ है स्वयं को पूर्णतया शुद्ध करना। यह निर्लिप्सा ही उत्थान का एक मात्र मार्ग है।आपको यह मान लेना चाहिए कि मैं एक सहजयोगी हूँ,सारी शक्तियों को मैं अपने अन्दर आत्मसात कर सकता हूं।उन शक्तियों को अपने अन्दर बनाये रखें, ग्रहण करें और विश्वस्त हो जॉय कि मेरे अन्दर ये शक्तियॉ हैं।आपका सर्वव्यापक शक्ति से सम्बन्ध सच्चा,दृढ और निष्कपट होना चाहिए।तो फिर परमात्मा से एकाकारिता का आभास होना सहज है।आप जितना उन्नत होना चाहेंगे आपकी शक्ति आपको उतनी ही अधिक सामर्थ्य देगी ।आत्म निरीक्षण करें।
है आप( आदि शक्ति मॉ) सहज योग,सत्य से दृढतापूर्वक जुडे हैं।समर्पण में आपको किसी का कोई भय नहीं है,अपनी हानियों का भी नहीं ।समर्पण से गतिशील बन जाते हैं आप वास्तविक सृजनात्मकता शक्ति बन जाते हैं।