अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
तृप्तों को भोज दिया करते, मित्रों को जिमाना तुम जानो।
अनजानी भूख की चिंता में, भोजन त्यागो तो हम जानें॥
इस हंसती गाती दुनिया में, मदमस्त बसना तुम जानो।
मधु की मनुहारें मिलने पे, तुम गरल पियो तो हम जानें॥
मनमौजी बनकर जग रमता, संयम में रहना कठिन महा।
जो पानें में जीवन बीता, उसे भेंट चढाओ तो हम जानें॥
दमन तुम्हारा जग चाहता, और जगत हिलाना तुम जानो।
है लगन सभी की चढने में, स्कंध बढाओ तो हम जानें॥
इन लहरों का रुख देख-देख, जग की पतवार चला करती।
झंझावात भरे तूफानों में, तरणि को तिराओ तो हम जानें॥
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥