मन और शरीर के पार भी है संसार
।।ॐ।।असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय।।ॐ।।
‘‘असत्य से सत्य की ओर मुझे ले चलो, अंधकार से ज्योति की ओर मुझे ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर मुझे ले चलो।’’
समाधि की परिभाषा : समाधि समयातित है जिसे मोक्ष कहा जाता है। इस मोक्ष को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा गया है। योग में इसे समाधि कहा गया है। इसके कई स्तर होते हैं। अंतिम स्तर है ब्रह्मलीन हो जाना। मोक्ष एक ऐसी दशा है जिसे मनोदशा नहीं कह सकते।
क्या हैं समाधि : मोक्ष या समाधि का अर्थ अणु-परमाणुओं से मुक्त साक्षीत्व पुरुष हो जाना। तटस्थ या स्थितप्रज्ञ अर्थात परम स्थिर, परम जाग्रत हो जाना। ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय का भेद मिट जाना। इसी में परम शक्तिशाली होने का ‘बोध’ छुपा है, जहाँ न भूख है न प्यास, न सुख, न दुख, न अंधकार न प्रकाश, न जन्म है, न मरण और न किसी का प्रभाव। हर तरह के बंधन से मुक्ति। परम स्वतंत्रता अतिमानव या सुपरमैन।
The world is beyond mind and body
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संपूर्ण समाधि का अर्थ है मोक्ष अर्थात प्राणी का जन्म और मरण के चक्र से छुटकर स्वयंभू और आत्मवान हो जाना है। समाधि चित्त की सूक्ष्म अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। जो व्यक्ति समाधि को प्राप्त करता है उसे स्पर्श, रस, गंध, रूप एवं शब्द इन 5 विषयों की इच्छा नहीं रहती तथा उसे भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, मान-अपमान तथा सुख-दु:ख आदि किसी की अनुभूति नहीं होती।
समाधि के प्रकार :
योग में समाधि के दो प्रकार बताए गए हैं- A.सम्प्रज्ञात और B.असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।
योग में समाधि के दो प्रकार बताए गए हैं- A.सम्प्रज्ञात और B.असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।
भक्ति सागर में समाधि के 3 प्रकार बताए गए है- 1.भक्ति समाधि, 2.योग समाधि, 3.ज्ञान समाधि।
पुराणों में समाधि के 6 प्रकार बताए गए हैं जिन्हें छह मुक्ति कहा गया है- (1)साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), (2)सालोक्य (लोक की प्राप्ति), (3) सारूप (ब्रह्मस्वरूप), (4)सामीप्य, (ब्रह्म के पास), (5) साम्य (ब्रह्म जैसी समानता) (6) लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।
1.सम्प्रज्ञात समाधि- वैराग्य द्वारा योगी सांसारिक व्यक्ति और वस्तुओं से स्वयं को अलग कर लेता है और चित्त या मन से उसकी इच्छा को त्याग देता है, जिससे मन एकाग्र होता है और समाधि को धारण करता है। यह सम्प्रज्ञात समाधि कहलाता है।
2.अस्प्रज्ञात समाधि- इसमें व्यक्ति को कुछ भान या ज्ञान नहीं रहता सिर्फ होश रहता है। मन जिसका ध्यान कर रहा होता है उसी में उसका मन लीन रहता है। उसके अतिरिक्त किसी दूसरी ओर उसका मन नहीं जाता। दरअसल यह अमनी दशा है। साक्षी भाव।
संप्रज्ञात समाधि को 4 भागों में बांटा गया है-
1.वितर्कानुगत समाधि- सूर्य, चन्द्र, ग्रह या राम, कृष्ण आदि मूर्तियों को, किसी स्थूल वस्तु या प्राकृतिक पंचभूतों की अर्चना करते-करते मन को उसी में लीन कर लेना वितर्क समाधि कहलाता है।
2.विचारानुगत समाधि- स्थूल पदार्थों पर मन को एकाग्र करने के बाद छोटे पदार्थ, छोटे रूप, रस, गन्ध, शब्द आदि भावनात्मक विचारों के मध्य से जो समाधि होती है, वह विचारानुगत अथवा सविचार समाधि कहलाती है।
3.आनन्दानुगत समाधि- आनन्दानुगत समाधि में विचार भी शून्य हो जाते हैं और केवल आनन्द का ही अनुभव रह जाता है।
1.वितर्कानुगत समाधि- सूर्य, चन्द्र, ग्रह या राम, कृष्ण आदि मूर्तियों को, किसी स्थूल वस्तु या प्राकृतिक पंचभूतों की अर्चना करते-करते मन को उसी में लीन कर लेना वितर्क समाधि कहलाता है।
2.विचारानुगत समाधि- स्थूल पदार्थों पर मन को एकाग्र करने के बाद छोटे पदार्थ, छोटे रूप, रस, गन्ध, शब्द आदि भावनात्मक विचारों के मध्य से जो समाधि होती है, वह विचारानुगत अथवा सविचार समाधि कहलाती है।
3.आनन्दानुगत समाधि- आनन्दानुगत समाधि में विचार भी शून्य हो जाते हैं और केवल आनन्द का ही अनुभव रह जाता है।
4.अस्मितानुगत समाधि- अस्मित अहंकार को कहते हैं। इस प्रकार की समाधि में आनन्द भी नष्ट हो जाता है। इसमें अपनेपन की ही भावनाएं रह जाती है और सब भाव मिट जाते है। इसे अस्मित समाधि कहते हैं। इसमें केवल अहंकार ही रहता है। पतंजलि इस समाधि को सबसे उच्च समाधि मानते हैं। हालांकि इस समाधि के योग सूत्र में विस्तृत विरण मिलता है।
कैसे घटित होती है समाधि : जब व्यक्ति प्राणायाम, प्रत्याहार को साधते हुए धारणा व ध्यान का अभ्यास पूर्ण कर लेता है तब वह समाधि के योग्य बन जाता है। समाधि के लिए व्यक्ति के मन में किसी भी प्रकार के बाहरी विचार नहीं होते। व्यक्ति का मन पूर्ण स्थिर रहकर आंतरिक आत्मा में लीन हो जाता है तब समाधि घटित होती है। इसलिए समाधि से पहले ध्यान के अभ्यास को बताया गया है। ध्यान से ही चित्त (मन) विचार शून्य हो जाने की अवस्था में ही समाधि घटित होती है।
समाधि प्राप्त व्यक्ति का व्यवहार सामान्य व्यक्ति से अलग हो जाता है, वह सभी में ईश्वर को ही देखता है और उसकी दृष्टि में ईश्वर ही सत्य होता है। समाधि में लीन होने वाले योगी को अनेक प्रकार के दिव्य ज्योति और आलौकिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त स्वत: ही होता है।
सिद्धियाँ : मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ाते ही बहुत-सी चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें सिद्धियाँ कहते हैं, किंतु इनके प्रलोभन में उलझने वाला अंतत: पछताता है। फिर भी जान लें कि अट्ठारह सिद्धियाँ होती हैं- (1)अणिमा, (2)लघिमा, (3)गरिमा, (4)प्राप्ति, (5)प्राकाम्य, (6) महिमा, (7)ईशित्व, (8)वशित्व, (9)सर्वकामवा सादिता (10)सर्वज्ञ, (11)दूरश्रवण, (12)परकाया प्रवेश, (13)वाक्य सिद्धि, (14)कल्पवृक्ष, (15)सृष्टि शक्ति, (16)सहांरशक्ति, (17)अमरत्व और (18)सर्वाग्रगण्यता।
क्या मिलेगा मोक्ष से : आँखों के बगैर देखने की ताकत, कानों के बगैर सुनने की ताकत, मन और मस्तिष्क के बगैर बोध करने की ताकत, शरीर के जन्म और मरण के चक्र से बाहर निकलकर स्वयं को कहीं भी किसी भी रूप में अभिव्यक्त करने की ताकत और सच मानो तो इस ब्रह्मांड से अलग रहने की ताकत। ब्रह्मांड से अलग वही रह सकता है, जो ब्रह्म स्वरूप शुद्ध चैतन्य है।