एक चांदनी रात में दैवयोग से एक भेड़िये को एक अत्यन्त मोटे ताजे कुते से भेंट हो गयी। प्राथमिक शिष्टाचार के बाद भेडिये ने कहा-‘मित्र’ यह कैसी बात है कि तुम स्वयं तो खा-पीकर इतने मोटे-ताजे हो गये हो और इधर मैं रात-दिन भोजन के अभाव में मर रहा हूँ. बड़ी कठिनाई से इस दुर्बल शरीर में मेरे प्राण मात्र अवशेष रह गये हैं। कहा-ठाक तो है. तुम भी हमारे-जैसे मोटे-ताजे बन सकते हो. बस, आवश्यकता इस बात की हैं कि तुम भी मेरा अनुकरण करो।
भेड़िये ने कहा-‘वह क्या? बस, केवल मेरे मालिक के घर की रखवाली करना और रात में चोरों को समीप न आने देना कुत्ता बोला। सब प्रकार से सोलहों आने जी लगाकर करूंगा।
आजकल मेरे दिन बड़े दुःखसे बीत रहे हैं। एक तो जंगल का वातावरण, दूसरे असह्य हिमपात, घोर वर्षा-जीवन-धारण कठिन हो रहा है सो सिर पर गरम छत और भर पेट भोजन, मैं समझता हूँ, यह परिवर्तन कोई बुरा तो नहीं दीखता भेड़िया बोला। बिलकुल ठीक। बस, तो अब आपको कुछ २ पीछे-पीछे चलन करना नहीं है। आप चुपचाप मेरे पीछे आइये। कुत्ता बोला। इस प्रकार जब दोनों धीरे-धीरे चले । तब तक भेड़िये का ध्यान कुत्ते की गर्दन पर पडे दाग की तरफ गया। इस विचित्र चिह्न को देख के इतना कुतूहल हुआ कि वह किसी प्रकार अपना सका और पूछ बैठा कि वह उसका कैसा कि कुत्ते ने कहा-‘यह कुछ नहीं है।