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विचित्र मंत्री – राजाओं की कहानी

विचित्र मंत्री

जिस राजा का मंत्री , होता बुद्धिमान 
उस राजा के राज्य में , गुणियों का होता सम्मान।। 
प्राचीन समय में किसी राज्य का राजा अत्याधिक मूर्ख था। उसकी मूर्खता का डंका समस्त राज्य में बज रहा था। इसके साथ ही उसका मंत्री बहुत ही बुद्धिमान तथा विचित्र प्रकृति का था। एक दिन एक कथा वाचक राजा के पास आए और उन्हें आशीर्वाद देकर बैठ गए। राजा ने उनसे पूछा-“कहिए पंडित जी कैसे आना हुआ? ” पंडित जी ने राजा से कहा – मैं एक कथा वाचक हूँ और आपको कथा सुनाना चाहता हूँ। राजा ने पंडित जी को कथा सुनाने के लिए अपने राज मंदिर में भेज दिया। पंडित जी ने राज मंदिर में कथा कहनी प्रारम्भ कर दी।
Bizarre Minister

दूसरे दिन एवं तीसरे दिन अन्य एक-एक वाचक राजा के पास आकर बोले कि हम आपको कथा सुनाना चाहते हैं। राजा ने कथा वाचने के लिए उन्हें भी राज मंदिर में भेज दिया। इसी तरह चौथे दिन भी एक कथा वाचक राजा के पास कथा सुनाने के लिए पहुँचे। उन्हें भी राजा ने राज मंदिर भेज दिया। इस तरह एक-एक करके एक ही स्थान पर कथा सुनाने के लिए चार कथा वाचक एकत्र हो गये जो एक दूसरे से ईर्ष्या से कहने लगे-

पहला कथा वाचक -” हे राम! अब कैसे होगी?”
दूसरा कथा वाचक-”जो तेरे में होगी, वही मुझमें होगी।” 
तीसरा कथा वाचक–”यह अंधा धुंध कब तक चलेगी। “
चौथा कथा वाचक–”जब तक चले, तभी तक सही। ” 
चारों पंडितों का आपस में इस प्रकार वाक्‌ युद्ध चल रहा था कि राजा अपने मंत्री को लेकर कथा सुनने के लिए राज मंदिर पहुँचे और उनसे बोले – ये कौन सी रामायण की कथा हो रही है? यह कथा तो तुलसी-बाल्मीकि, अध्यात्म में से किसी की भी नहीं है। 
बुद्धिमान मंत्री बोले – महाराज! यह श्री रामायण की कथा ही है। 
राजा ने पूछा – वह कैसे? 
मंत्री ने उत्तर दिया – महाराज! पहले पंडित जी का आशय है कि अशोक वन में असुर और राक्षसियों से घिरी हुई सीता जी कह रही हैं कि–” हे नाथ! अब कैसी होगी? ” जिसको सुनकर दूसरे पंडित जी ने बताया कि त्रिजटा सीता जी से बोली–घबराओ मत जो तेरी में होगी, वही मुझ में होगी। यह सुनकर तीसरे पंडित जी कह रहे हैं कि मन्दोदरी रावण से कहती है – ये अन्धा धुंध कब तक चलेगा।” उसके बाद चौथे पंडित जी रावण से कहलवा रहे हैं–”जब तक चले, तब तक सही है।
 
अपने विचित्र मंत्री की बुद्धि पर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और चारों पंडितों को दक्षिणा के रूप में 200-200 गिन्‍नी देकर विदा किया। इसका तात्पर्य है कि किसी भी राज्य का राजा यदि बुद्धिहीन हो और मंत्री बुद्धिमान हो तो गुणियों, विद्वानों एवं मूर्खो तक का सम्मान करा देता है।
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