मुक्ति साधन ही मोक्ष का सरल मार्ग है
सरल मार्ग है मोक्ष का, भक्ति ही जग माँहि।
बिना भक्ति के मित्रवर, ईश्वर मिलता नांहि॥
एक रानी से राजा को बड़ा प्यार था। उस रानी के लिए चार नौकर थे। उनमें से एक ऐसा था कि कष्ट पड़ने पर वह रानी के पास जाता। रानी को उस पर दया आती तो राजा उसके कष्टों को दूर कर देता था। दूसरा नौकर यह कहता कि रानी हम पर बहुत दयालु हैं, राजा हम पर कभी क्रुद्ध नहीं हो सकते। रानी उसे पहले नौकर की अपेक्षा बहुत मानती थी, इसलिए राजा भी उसका सम्मान करते थे।
तीसरा नौकर ऐसा था जो रानी की सेवा में खाना, पीना, पहनना सभी भूला हुआ था। उस पर रानी की अपार कृपा थी, इस कारण राजा भी उसके वश में थे। नौकर जो कहता राजा वही करते। परन्तु चौथा नौकर कुछ ऐसा था कि वह रानी को प्रसन्न रखने की विधि नहीं जानता था। उसने विचार किया कि रानी को बाग देखने का बड़ा शौक है। इसलिए मैं भी एक बाग लगाता हू । शायद रानी उसे देखकर प्रसन्न हो जायें । उसने एक बहुत बड़ा बाग बनाया। बारह वर्ष में उसका बाग हरा भरा और प्रसिद्ध हो गया।
संयोग से एक दिन उस बाग की तरफ राजा निकले और बाग को देखकर नौकर पर बहुत प्रसन्न हुए। उससे राजा ने पूछा यह बाग तुमने किसके लिए तैयार किया है। नौकर ने बताया कि रानी जी को प्रसन्न करने के लिए मैंने यह बाग बनाया है। राजा उससे बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि भाई! आज से रानी साहिबा तथा स्वयं मेरी भी कृपा तुम पर रहेगी।
प्रयोजन यह है कि भक्ति हीन जीव चौथे नौकर की संभावना में है। जिन पर भक्ति महारानी की कृपा कोर नहीं फिरती या वह अपने आपको भक्ति में संलग्न करने में असहाय है और फिर भी भक्ति महारानी को अपनाना चाहता है, उसको गुण कीर्तन श्रवणादिक साधनों का बाग लगाकर हरा भरा करना चाहिए। जिस दिन यह बाग प्रसिद्ध हो जायेगा, उसी दिन ईश्वर उसे स्वयं देखकर प्रसन्न हो जायेंगे और भक्ति महारानी को भी कृपा कर देने की सिफारिश कर देंगे।