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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तेरी मेहरबानी का है बोझ इतना,
इसे मैं उठाने के काबिल नहीं हूं।।
मैं आ तो गया हूँ, मगर जानता हूँ,
तेरे दर पे आने के काबिल नहीं हूं।।
तेरे दर पे आने के काबिल नहीं हूं।।
ये माना कि दाता हो तुम कुल जहां के।
मगर कैसे झोली फैलाऊं मैं आ के।
जो पहले दिया है, वो कुछ कम नहीं है,
उसी को निभाने के काबिल नहीं हूं।।
मगर कैसे झोली फैलाऊं मैं आ के।
जो पहले दिया है, वो कुछ कम नहीं है,
उसी को निभाने के काबिल नहीं हूं।।
तुम्ही ने अदा की, मुझे जिंदगानी,
तेरी महिमा मैने, फिर भी न जानी।
कर्जदार तेरी दया का हूँ इतना,
ये कर्जा चुकाने के काबिल नहीं हूं।।
तेरी महिमा मैने, फिर भी न जानी।
कर्जदार तेरी दया का हूँ इतना,
ये कर्जा चुकाने के काबिल नहीं हूं।।
यही मांगता हूं, मैं सिर को झुका लूं।
तेरा दीद इस बार जी भर के पा लूं।
शिवाय दिल के टुकड़े के ए मेरे दाता,
मैं कुछ भी चढ़ाने के काबिल नहीं हूं।।
तेरा दीद इस बार जी भर के पा लूं।
शिवाय दिल के टुकड़े के ए मेरे दाता,
मैं कुछ भी चढ़ाने के काबिल नहीं हूं।।