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तेरे घट में झलका – Tere ghat mein jhatka jor kabir ke Shabd

tere ghat mein jhalka jor Kabir ke Shabd

Kabir ke Shabd

तेरे घट में झलका जोर, बाहर क्या देखै।
पांचां ऊपर बन्ध लगा ले और पचीसों मोड़।
मन की बाघ सूरत घर लाओ,प्रीत जगत से तोड़।।
देह नगर में अद्भूत मेला, सौदा कर रहे चोर।
आतमराम अमर पद पावै, मग्न रहे निशि भोर।।
एक पलक के फेर में रे, रहे निरंजन पौर।
उल्टा पूठा सब जग झूठा, कहा मचावै शोर।।
प्रेम गली विच साहब पावै, और नहीं नर ठोर।
पहुंचे साध अगाध अगम घर, बंधे इश्क की डोर।।
कोटिक चन्द्र अमी जहाँ बरसे, निकले भान करोड़।
नित्यानन्द महबूब गुमानी, जहां अनहद घन घोर।।
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