![]() |
Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तनै जाना होगा रै, सारी दुनिया ने छोड़ के।।
देव तलक भी तरस रहे, इसा मानस जन्म दुहेला।
मोह मान बड़ाई सब झूठा, धन जोबन रूप नवेला।
फेर बता तूं किसकी खातिर, भरे पाप ला ठेला।
साँच बता के लेके आया, के ले जागा गेल्याँ।
दुःख पाना होगा रे, कुछ फायदा ना धन जोड़ के।।
मोह मान बड़ाई सब झूठा, धन जोबन रूप नवेला।
फेर बता तूं किसकी खातिर, भरे पाप ला ठेला।
साँच बता के लेके आया, के ले जागा गेल्याँ।
दुःख पाना होगा रे, कुछ फायदा ना धन जोड़ के।।
मोह के बन्दर बड़े बाग में, कर रहे बड़ी तलाशी।
तृष्णा तोते बढ़िया फल के, बेशक ला दें दागी।
हाल रहा योहे तो एक दिन, कुछ ना रहना बाकी।
पड़े फिर पछताना रे, रोवेगा सिर ने फोड़ के।।
तृष्णा तोते बढ़िया फल के, बेशक ला दें दागी।
हाल रहा योहे तो एक दिन, कुछ ना रहना बाकी।
पड़े फिर पछताना रे, रोवेगा सिर ने फोड़ के।।
सबसे पहले काम तेरा, मिले सत्संग के में जावै।
सन्तों आगे हाथ जोड़ के, अपना शीश झुकावै।
जितनी सेवा करे गुरुआं की, उतनाए फल पावै।
सुबह का भूला शाम घर आवै, भुला नहीं कहावै।
गम खाना होगा रे, वो लवै नहीं मरोड़ कै।।
सन्तों आगे हाथ जोड़ के, अपना शीश झुकावै।
जितनी सेवा करे गुरुआं की, उतनाए फल पावै।
सुबह का भूला शाम घर आवै, भुला नहीं कहावै।
गम खाना होगा रे, वो लवै नहीं मरोड़ कै।।