Kabir ke Shabd
तन मन्दिर अंदर खेलै है, खेल खिलाड़ी।।
पाँच नाग पच्चीस नागनी, ये डस डस के खा रही।
निर्गुण बीन बजी सद्गुरु की, वा रोकी पकड़ पिटारी।।
नाभि कंवल से पता चलत है, सीधी सड़क जा रही।
सोहंग डोरी चढ़ी गगन में, ले गया पतंग उडारी।।
ओहंग सोहंग बाजे बाजैं, आवाज लगै बड़ी प्यारी।
जो उस घर को जाना चाहवै, कर सद्गुरु से यारी।।
बेगम राज उसी राजा का, जो बैठा अटल अटारी।
कह कबीर सुनो भई साधो, पहुंचेंगे सत्तधारी।।