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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
तन मन शीश ईश अपने को, पहलम चोट चढावे।
हब कोए राम भगत गत पावै हो जी।
सद्गुरु तिलक अजप्पा माला, जुगत जटा रखवावै।
सत्त कोपीन और सत्त का चोला, मांहे भेख बनावै।।
लोकलाज कुल की मर्यादा, तृण ज्यूँ तोड़ बगावै।
कनक कामनी जहर कर जानै, शहर अगमपुर जावै।।
ज्यूँ पतिव्रता पीव संग राजी, आन पुरूष ना भावै।
बसे पीहर में प्रीत प्रीतम में, न्यू जन सुरत लगावैं।।
स्तुति निंदा मान बड़ाई, मन से मार भगावै।
अष्ट सिद्दीकी अटक न मानै, आगे कदम बढ़ावै।।
आशा नदी उलट के फेरे आड़ा बन्ध लगावै।
भव जल खार समंदर अंदर, फेर न फोड़ मिलावै।।
गगन महल गोविंद गुमानी, पल में ही पहुँचावै।
नित्यानन्द माटी का मंदिर, नूर तेज हो जावै।।
नित्यानन्द माटी का मंदिर, नूर तेज हो जावै।।