रूप नाद में देख लो
किसी गॉव मेँ एक गरीब विधवा ब्राह्मणी रहती थी। तरुणी थी। सुन्दर रूप था। घर मेँ ओर कोई न था। गॉव का जमींदार दुराचारी था। उसने ब्राह्मणी के रूप की तारीफ सुनी। वह उसके घर आया। ब्राह्मणी तो उसे देखते ही काँप गयी। उसी समय भगवान की कृपा से उसे एक युक्ति सूझी।
उसने दूर हटते हुए हँसकर कहा – सरकार ! मुझें छूना नहीं । मैं मासिक धर्म से हूँ। चार दिन बाद आप पधारियेगा जमींदार संतुष्ट होकर लौट गया।
ब्राहाणी ने जमाल गोटा मँगवाया और उसे खा लिया। उसे दस्त होने लगे दिन-रात में सैकडों बार। उसने मकान के चौक मेँ एक मिट्टी का नाद रखवा ली और वह उसी में टट्टी करने लगी। सैकडों दस्त होने से उसका शरीर घुल गया आँखें धँस गयीं। मुख पर झुंर्रियाँ पड़ गयीं। बदन काला पड़ गया। शरीर काँपने लगा, उठने-बैठने को ताकत नहीं रही, देह सूख गयी । उसका सर्वथा रूपान्तर हो गया और वह भयानक प्रतीत होने लगी।
चार दिन बाद जमींदार आया। तरुणी सुन्दरी ब्राह्मणी का पता पूछा। चारपाई पर पड़े कंकाल से क्षीण आवाज आयी । मैं ही वह ब्राह्मणी हूँ। जमींदार ने मुँह फिरा लिया और पूछा-तेरा यह क्या हाल हो गया । वह रूप कहाँ चला गया ? क्षीण उत्तर मिला- जाकर उस नाद में देख लो । सारा रूप उसी में भरा है । मूर्ख जमींदार नाद के पास गया दुर्गन्ध के मारे उसकी नाक फटने लगी । वह तुरंत लौट गया ।