गरीब चोर से सहानुभूति
एक भक्त थे, कोई उनका कपड़ा चुरा ले गया । कुछ दिनों बाद उन्होंने उसको बाजार में बेचते देखा। दूकानदार कह रहा था कि कपडा तुम्हारा है या चोरी का, इसका क्या पता। हाँ, कोई सज्जन पहचानकर बता दें कि तुम्हारा ही है तो मैं खरीद लूँगा। भक्त पास ही खड़े थे और उनसे दूकानदार का परिचय भी था।
Sympathize with the poor thief |
उन्होंने कहा…मैं जानता हूँ तुम दाम दे दो। दूकानदार ने कपडा खरीदकर कीमत चुका दी । इस पर सहानुभूति भक्त के एक साथी ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? इस पर भक्त बोले कि वह बेचारा बहुत गरीब है, गरीबी से तंग आकर उसे ऐसा करना पडा है। गरीबो की तो हर तरह से सहायता ही करनी चाहिये। इस अवस्थायें उसको चोर बतलाकर फँसाना और भी पाप है । इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर रोने लगा । उस दिन से वह भी भक्त बन गया।