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*चटपटी बाल कहानी : आपसी फूट महंगी पड़ी* *Sweet child story: mutual discord became costly*

*आपसी फूट महंगी पड़ी*

प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड़ एक ही था, परंतु सिर दो थे। नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावजूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल।

वे एक-दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने-समझने का काम दिमाग से करता है और दिमाग होता है सिर में। दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे, जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता, तो दूसरा पश्चिम। फल यह होता था कि टांगें एक कदम पूरब की ओर चलतीं, तो अगला कदम पश्चिम की ओर। और भारुंड स्वयं को वहीं खड़ा पाता था। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।

एक दिन भारुंड भोजन की तलाश में नदी तट पर घूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा- ‘वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीजें बनाई हैं।’

सीख : आपस की फूट सदा ले डूबती है।

‘अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।’ कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढ़ाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला, ‘अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया है और इसे मैं ही खाऊंगा।’

‘अरे! हम दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें बांटकर ही खानी चाहिए।’ दूसरे सिर ने दलील दी।

पहला सिर कहने लगा, ‘ठीक! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमारे एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी है।’

दूसरा सिर बोला, ‘खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता भाई। जीभ का स्वाद भी तो कोई चीज है। तबीयत को संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती है। खाने का असली मजा तो मुंह में ही है।’

पहला सिर तुनककर चिढ़ाने वाले स्वर में बोला, ‘मैंने तेरी जीभ और खाने के मजे का ठेका थोड़े ही ले रखा है। फल खाने के बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी से गुजारा चला लेना। अब ज्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे।’ ऐसा कहकर पहला सिर चटकारे ले-लेकर फल खाने लगा।

इस घटना के बाद दूसरे सिर ने बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पड़ी। उसे जिस चीज की तलाश थी, उसे वह मिल गई थी। दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी, ‘अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल है? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है।’

दूसरा सिर हंसा, ‘हे हे हे! तू चुपचाप अपना काम देख। तुझे क्या लेना-देना है कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात?’

पहले सिर ने समझाने की कोशिश की, ‘तूने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।’

दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारू था।

बोला, ‘मैंने तेरे मरने-जीने का ठेका थोड़े ही ले रखा है? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।’

दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तड़प-तड़पकर मर गया।

सीख : आपस की फूट सदा ले डूबती है।

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