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कबीर सुरतां हलकी देदे रोवेगी – Surta Halki De De Rovegi Kabir Ke Shabd.

Kabir surta Halki De De Rovegi

Kabir Ke Shabd

सुरतां हलकी दे दे रोवेगी, जब चालेगी अकेली।
जो तूँ सुरतां राम मिले तो हो सद्गुरु की चेली।।
सत्त में रहना सत्त में सहना, और सतसङ्ग की गैली।
अपने गुरु ने बिसार के तूँ, दूजे के संग होली।।
अमृत छोड़ के विष का प्याला, पी गई विष की बेली।
यम के दूत तनै ले जांगे घाल गले में बेली।।
धर्मराज तेरा लेखा लेगा, खुले पाप को थैली।
कह कबीर सुनो म्हारी सुरतां, सो सो बरिया कह ली।
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