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सुमर सुमर नर उतरो पार, भँव सागर की तीक्ष्ण धार

kabir

Kabir ke Shabd

सुमर सुमर नर उतरो पार, भँव सागर की तीक्ष्ण धार।।
धर्मजहाज माहीचढ़ लीजो, सम्भल-२ ता में पग दीजो।।
श्रम कर मन को संगी कीजो, हरि मार्ग को लागो यार।।
बादवान पुनि ताहि चलावै, पाप भरै तो हलन न पावै।
काम क्रोध लूटन को आवै, सावधान हो करो सम्भाल।।
मान पहाड़ी तहाँअड़त है, आशा तृष्णा भँवर पड़त हैं।
पाँच मगर जहां चोट करत हैं, ज्ञान आंख बल चलो निहार।।
ध्यान धनी का हृदय धारे, गुरु कृपा से लगो किनारे।
जब तेरी नैया उतरै पारे, जन्म मरण दुःख विपदा टार।।
चौथे पद में आनन्द पावै,इस जग में तूँ फेर न आवै।
चरणदास गुरुदेव चितावै, सहजोबाई करै विचार।।
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