वैशाख की कहानी
एक राजा था। वह सुबह जल्दी उठता था ओर वेशाख के माह में गंगाजी में स्नान करता था ओर कहता था कि मेरे से पहले कोई भी गंगाजी में नहीं नहाए। एक बंदरिया थी, जो रोज राजा से पहले नहा लेती थी और राजा बाद में नहाने जाता था। जब राजा ने पानी हिलता हुआ ओर बिखरा हुआ सा देखा तो उसने पहरा लगा दिया और अपने सिपाहियों को आज्ञा दे दी कि ध्यान रहे कि मुझसे पहले कोई भी नहीं नहा पाये। गंगाजी के किनारे एक पेड था। उसके ऊपर बंदरिया रहती थी। डाली के सहारेउततरकर गंगाजी मे नहा लेती और पेड़ पर जाकर बैठ जाती।
उसे एक दिन सिपाही ने देख लिया। उसने देखा कि जब सबको नींद आ जाती तो यह बंदरिया उस समय गंगाजी में नहाती। सिपाही उसको पकड़कर राजा के पास ले गया और कहा कि यह बंदरिया आपसे पहले नहाती है। राजा ने प्रण किया हुआ था कि यदि कोई औरत मेरे से पहले नहाती होगी तो मैं उसके साथ विवाह कर लूंगा। राजा ने अपना प्रण पूर्ण करते हुए बंदरिया से विवाह संपन्न किया। वैशाख में नहाने से बंदरिया के बच्चे होने की आशा हो गई। पूरे महीने हो गये। जब बंदरिया ने पूछा कि मेरे बच्चा होगा तब मैं किसे जगाऊँगी। यह सुनकर राजा ने महल में एक घंटी बंधवा दी और कहा-कि जब तेरे दर्द हो तब यह घंटी हिला दियो॥ फिर मैं आकर सारा इंतजाम कर दूंगा।
राजा के कई रानियाँ थीं। उन्होंने उस बंदरिया से पूछा-कि ये घंटी किसने बांधी हे। तब वह बंदरिया बोलीकि राजाजी ने बांधी है, जब मेरे बच्चा होगा तब में उन्हें यह घंटी बजाकर बुला लूंगी। एक रानी ने कहा-‘“जरा बजा कर दिखा कि राजा जी आयेंगे या नहीं!” बंदरिया ने घंटी बजा दी। राजा आया। जब पूछा घंटी क्यों बजाई तब बंदरिया बोली-रानी ने कहा था। बंदरिया के बच्चा होने लगा तो उसने घंटी बजाई पर राजा नहीं आया। फिर रानियों से बंदरिया ने पूछा-मैं बच्चा कैसे पैदा करूँ तब रानियों ने कहा-” आँखों पर पट्टी बँधवा ले, ओखली में सिर दे दे। फिर बंदरिया के वैशाख नहाने के पुण्य से एक अत्यंत ही सुन्दर लड़का जन्मा। होते ही रानी ने राजा को नहीं दिया और दासी को दे दिया और कहा कि इस बंदरिया के बच्चे को नदी में बहा दे और बंदरिया के पास आटे को खून में लपेटकर रख दे।
राजा ने आकर पूछा कि क्या बच्चा हुआ है तब रानी ने कहा बच्चा नहीं हुआ, ये ईट, पत्थर हुआ है। फिर राजा ने संतोष कर लिया कि रानियों के बच्चा नहीं होता इसलिये इसके भी क्यों होगी उधर दासी ने उस सुंदर शिशु को नदी में न बहाकर कुम्हार के खण्दड़ में रख दिया दूसरे दिन कुम्हार कुम्हारिन खण्दड़ में आए तो वहां एक सुंदर शिशु को रोते हुए देखा। कुम्हार कुम्हारिन भी निसंतान थे। उन्होंने उस शिशु को अपने लिए भेजी गई भगवान की भेंट माना और बड़े प्रेम से शिशु का पालन पोषण करने लगे।। कुछ ही समय के बाद उस लड़के को सारी बात का पता चल
गया था कि मैं बन्दरिया का बच्चा हूँ, और रानियों ने मुझे मारने के लिये दासी को दे दिया था। कुएं पर दासियां पानी भरने के लिये आईं तो वह दासियों को देखकर बोला आओ रे मेरे मिट्टी के हाथी, घोड़े पानी पियो।
गया था कि मैं बन्दरिया का बच्चा हूँ, और रानियों ने मुझे मारने के लिये दासी को दे दिया था। कुएं पर दासियां पानी भरने के लिये आईं तो वह दासियों को देखकर बोला आओ रे मेरे मिट्टी के हाथी, घोड़े पानी पियो।
तब दासियां बोलीं, “अरे मूर्ख, कभी मिटटी का हाथी घोड़ा भी पानी पीता है?” लड़का बोला-”मूखों कहीं बंदरिया के भी ईंट, पत्थर पैदा होता है?” दासियों ने जाकर रानी से बोला कि एक कुम्हार का लड़का , उसने हमें यह बात कही और घडे पर कंकरी मारकर फोड़ दिया। तब रानी ने जहर का लड्डू बनाया और कहा-कि ये लड॒डूु उस लड़के को जाकर खिलाओ। दूसरे दिन वे दासियां उस लड़के को वह लद्दू खिलान॑ गई तो भगवान ने उस लड्डू को गोंद-गिरी का लड्डू बना दिया। अगले दिन दासियों ने आकर देखा कि वह मरा नहीं है और खेलता फिर रहा है। इस पर रानी रूठकर सो गई। राजा ने आकर पूछा-”रानी सो क्यों रही है” तब रानी ने जवाब दिया कि कुम्हार को अपनी बस्ती से निकाल दें”! राजा ने कहा-“’ये क्यों कड़वा बोलती है।’” पर रानी ने जिद करके कुम्हार को निकलवा दिया।
कुम्हार जंगल में रहने लगा। वहां वह लड़का बोला-”पिताजी, मेरे को 108 करवे और 108 गोले बना दो। वह ठंडे-ठंडे घड़े भरकर बैठ गया। गनगौरों के लिये मिट्टी लेने के लिये बहुत सारी लड़कियाँ आई। राजा की साहुकारिनी भी आई और बगीचे में बेठकर खेलने लग गई। खेलते-खेलते प्यास लग गई। ये लड़कियां उस लड़के से बोलीं कि हमें पानी पिला दे। वह लड़का बोला-”मेरे पास ये गोलियाँ हैं। इन्हें खाती चली जाओ और मेरे पीछे फिरती जाओ। फिर कई लडकियों ने कहा-”मैं तेरी गोली नहीं खाऊँ, हमें प्यास लग रही है, तू खा ले। फिर वह लड़की आगे आकर बेठ गई। लड़कियाँ एक-एक करके गोली खाती गई और ठंडा पानी पिया और उसके चारों तरफ फिरने लगीं। सब लड़कियों के पेट में गर्भ रह गया।
लड़कियाँ मिट॒टी लेकर घर गई तो पीछे उनके बाप ने ब्याह का साया निकलवाया तो साया नहीं निकला। पर उसने कहा इनका ब्याह तो हो जाना चाहिए। बाद पें लड़कियों में से किसी का जी घबराये तो कोई रोटी नहीं खाए, कोई उल्टी करे। फिर सबने उनसे पूछा, “तुम्हारे ये क्या हो गया?”’ “मुझे तो पता नहीं। में तो मिट्टी लेने गई थी। पर वहां कुम्हार का लड़का हमें एक-एक गोली देता गया और पानी पिलाता गया ओर खुद बीच में बेठ गया और हमसे कहा तुम चारों तरफ फिरो।”’ यह बात सुनकर सबके बाप कुम्हार के लड़के के पास गये और बोले-”हम अपनी लड़कियों का विवाह तेरे साथ करेंगे।” उसने सबसे साथ फेरे लिये। कृम्हार बोला “आप बडे आदमी हो राजा रानी हो। हमारा बेटा ऐसा क्यों करेगा पर सब कोई उसके साथ अपनी अपनी लडकिया का विवाह कर गये। बहुत सारी धन दौलत देकर अपनी लड़कियां को विदा कर दिया और इस तरह 108 बहुएँ आ गई। फिर सबके लड़क भी हो गये और 108 कमरे बना दिये। सब बहुओं के लिये भी कमरे बना दिये गये।
फिर लड़के ने कहा-”कि पिताजी, हम सारे नगर में दावत का बुलावा देंगे। आपके इतनी बहुएँ आई हैं और इतने पोते हो गये। कुम्हार ने कहा “जिमा दो।’” तब सारी नगरी और राजा-रानी को बुलावा दे दिया। सभी निमंत्रण पर आमंत्रित हुए। ओर राजा का परिवार भी सेना सहित आमंत्रित हुआ। ! लड़के ने कहा-“’हे राजन आप बन्दरिया को नहीं लाए?”’ राजा ने कहा-”तुम कहते हो तो बंदरिया को भी बुला लेते हैं।” राजा ने बंदरिया को बुलाने के लिये रथ-पालकी को सजा कर भिजवा दिया। वहां पर सारी सभा के बीच सोने की चोकी पर सुंदर गद्दी बिछवा दी। फिर बंदरिया आई तो गद्दी के ऊपर बैठा दिया और 108 बहुओं से कह दिया कि ये बंदरिया मेरी जन्म देने वाली मां है। और सब कोई सोने की मोहरें देकर गोद में पोते देती जाओ। फिर सब बहुएँ आई और सोने की मोहरें देकर पैर छूकर गोद में पोते देती गई। बंदरिया सबको आर्शावाद देती गई।
राजा की रानियां समझ गई और राजा से कहा-”ये हमें बुलाकर हमारा अपमान कर रहे हैं इसलिये हम जा रहे हैं। फिर राजा भी लड़कर बोला कि हे भाई तू बंदरिया का इतना स्वागत क्यों कर रहा है? लड़का बोला-““यह बंदरिया मेरी जन्म की माँ है।”’ राजा ने पूछा, “कैसे?”’ लड़का बोला-‘मैं बंदरिया से पैदा हुआ था तो तुम्हारी रानियों ने मुझे दासियों को दे दिया और कहा कि इसे नदी में बहा दो। लेकिन दासी ने मुझे नदी में नहीं बहाया। मुझे उसने खड्डे में रख दिया और कुम्हार और कुम्हारिन ने मुझे पाल-पोसकर बड़ा कर दिया। जो दासी मेरे को ले गई थी वह यहीं पर खड़ी है। दासी ने कह दिया कि हाँ मेरे को दिया था। मेरे से इसे नदी में नहीं फेंका गया इसलिये इसको खबनहदेड़े में रख दिया। रानियां सुनकर चुप रह गई। पीछे राजा ने रानियों को छोड दिया और बंदरिया को साथ ले गया।
साथ में पोतों को, बहुओं ओर बेटे को साथ ले बडे गाजे-बाजे से अपने घर ले गया ओर सबको अलग-अलग महल बनवा दिये। सब वहां पर जाकर राज्य करने लगीं और सारी दुनिया कहने लगी कि वैशाख नहाने का इतना फल है तो सभी को वैशाख मास में स्नान करना चाहिए और दान-पुण्य करना चाहिए। बाद में कुम्हार से कहा, “कि हे कुम्हार तुझे जितना धन चाहिए ले ले, तेरा मन चाहे तो -मेरे घर पर रह जा, और यदि तेरा मन अपने घर में रहने को करे तो तू अपने घर में ही रह, क्योंकि तुमने बहु बहुत बड़ा उपकार किया है। फिर इसको बहुत सारा धन दे दिया। बंदरिया बैशाख नहाई तो राजा जी का राज्य पाया और 108 पोते पाए। हे भगवान जैसे बंदरिया को सुख-सम्पत्ति दी वैसे ही सबको देना। जो कोई इस कहानी को कहता और सुनता है भगवान की कृपा से सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।