*वनवास के दौरान माता सीता जी को पानी की प्यास लगी । तभी प्रभु श्रीराम जी ने चारों ओर देखा तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था ।*
*श्री राम जी ने पूछा वह क्यों…?? तब मयूर🦚 ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप पैदल चलते हुए आएंगे । इसलिए मार्ग में “मैं🦚” अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा । उस के सहारे आप अवश्य ही जलाशय तक पहुंच ही जाओगे ।*
*यह बात तो हम सभी जानते हैं कि मयूर🦚 के पंख….. एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में स्वयं ही बिखरते हैं । अगर वह अपनी इच्छा के विरुद्ध अपने पंखों को बिखेरेगा तो उसकी मृत्यु हो जाती है औऱ वही हुआ । अंत में जब मयुर🦚अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है… उसने कहा कि वह कितना भाग्यशाली है की जो जगत की प्यास बुझाते हैं ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ । मेरा जीवन धन्य हो गया । अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही ।*
*तभी भगवान श्री राम ने मयुर से कहा, कि मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है, मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा अपने सर पर आपको चढ़ाकर।*
*तत्पश्चात, अगले जन्म श्री कृष्णावतार में भगवान ने अपने माथे पर मयूर🦚 पंख को धारण कर वचनानुसार उस मयुर🦚 का ऋण उतारा था ।*
*तात्पर्य यही है कि अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, फ़िर हम तो मानव है । न जाने हम तो कितने ही ऋणानुबंध से बंधे हैं । उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे ।*
*अर्थात इस जीवन में अपना जो भी भला (गौसेवार्थ, राष्ट्रहितार्थ, धर्म रक्षार्थ) हम कर सकते हैं, इसी जन्म में हमे करना है जय गौमाता ।*