पंचतंत्र की कहानी फकीर और बादशाह
एक फ़क़ीर स्वयं को बादशाह कहता था। एक दिन नगर के राजा की सवारी निकली। फ़क़ीर बीच रास्ते मे चल रहा था। सिपाही ने कहा— ‘बीच रास्ते से हटो। बादशाह अपनी सेना के साथ निकल रहे हैं।’ फ़क़ीर ने कहा—‘मैं भी बादशाह हूं। मैं नहीं हटूंगा।’ सिपाही ने राजा से कहा, एक फकीर रास्ते मे खड़ा है, हट नहीं रहा।
राजा ने उस फकीर से कहा— ‘तुम रास्ते से क्यों नहीं हट रहे?’ उसने कहा— ‘जैसे आप बादशाह हैं, वैसे ही मैं भी बादशाह हूं। राजा ने कहा— ‘राजा के पास सेना होती है, तुम्हारे पास सेना कहाँ है?’ फकीर ने कहा— ‘सेना वो रखता है, जिसके दुश्मन होते हैं। मेरा कोई दुश्मन नहीं।’ राजा ने कहा— ‘राजा के पास खजाना होता है। तुम्हारे पास खजाना कहाँ है?’ फकीर ने कहा— मुझे इसकी जरूरत नहीं। राजा उस फकीर से बहुत प्रभावित हुआ। राजा ने कहा, बादशाह मैं नहीं, सच्चे बादशाह आप हो।