महाशिवरात्रि की कथा
प्राचीन समय में एक नृशंस बहेलिया था जो नित्य प्रति अनगिनत निरपराध जीवों को मारकर अपने परिवार का पालन पोषण करता था। एक बार पूरे जंगल में विचरण करने पर भी जब उसे कोई शिकार न मिला तो क्षुधाकुल एक तालाब के किनारे बेठ गया। उसी स्थान पर एक बेल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। बहेलिया ने उसी वृक्ष की शाखा पर चढ़कर अपनी आवास स्थली बनाने के लिए, बेलपत्रों को तोड़ते हुए शिवलिंग को ढक दिया। दिन भर की भूख से व्याकुल उस बहेलिया का एक प्रकार से शिवरात्रि व्रत पूरा हो गया। कुछ रात बीत जाने पर गर्भवती हिरणी उधर कुलाचें भरती आई। व्याध उसे मारने को तैयार हो गया। झिझकती, भयाकुल हिरणी दीन वाणी में बोली-हे व्याध! मैं अभी गर्भवती हूं, प्रसव बेला भी समीप है, इसलिए इस समय मुझे मत मारो, में प्रजनन क्रिया के बाद शीघ्र ही आ जाऊंगी। बहेलिया उसकी बातों में आ गया। थोड़ी रात व्यतीत होने पर एक दूसरी मृगी उस स्थान पर आई। बहेलिये के निशाना साधते ही उस मृगी ने भी निवेदन किया कि मैं अभी ऋतुक्रिया से निवृत्त सकामा हूं। इसलिए मुझे पति समागम करने दीजिए, मारिए नहीं। मैं मिलने के पश्चात् स्वयं तुम्हारे पास आ जाऊंगी।
बहेलिया ने उसकी बात को स्वीकार कर लिया। रात्रि की तृतीय बेला में एक तीसरी हिरणी छोटे छोटे छोनों को लिए उसी जलाशय में पानी पीने आई। बहेलिया ने उसको भी देखकर धनुष बाण उठा लिया। तब वह हिरणी कातर स्वर में बोली-हे व्याध! में इन छोनों को हिरण के सरंक्षण में कर आऊँ तो तुम मुझे मार डालना। बहेलिया ने दीन बचनों, से प्रभावित होकर इसे भी छोड़ दिया। प्रातःकाल के समय एक मांसल बलवान हिरण उसी सरोवर पर आया। बहेलिया ने पुनःअपने स्वभावनुसार शर संधान करना चाहा। यह क्रिया देखते ही हिरण व्याध से प्रार्थना करने लगा-हे व्याधराज! मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों को तुमने मारा है तो मूझे भी मारिये अन्यथा अगर वे तुम्हारे द्वारा छोड़ दी गई हों तो मुझे मिलकर आने पर मारना। मैं ही उनका सहचर हूं।
हिरण की करुणामयी वाणी सुनकर बहेलिया ने रात भर की बीती बात कह सुनाई तथा उसे भी छोड़ दिया। दिन भर उपवास, पूरी रात जागरण तथा शिव प्रतिमा पर बेलपत्र गिरने (चढ़ाने) के कारण बहेलिया में आन्तरिके शुचिता आ गई। उसका मन निर्दयता से कोमलता में ऐमा बदल गया कि हिरण परिवार को लोटने पर भी न मारने का निश्चय कर लिया। भगवान शंकर के प्रभाव से उसका हृदय इतना पवित्र तथा सरल हो गया कि वह पूर्ण अहिंसावादी बन गया। उधर हिरणियों से मिलने के पश्चात हिरण ने बहेलिया के पास आकर अपनी सत्यवादिता का परिचय दिया। उनके सत्यग्रह से प्रभावित होकर “अहिंसा परमोधर्म:” का पुजारी हो -गया। उसकी आंखों से आंसू छलक आये तथा पूर्वकृत कर्मों पर पश्चाताप करने लगा। इस पर स्वर्गलोक से देवताओं ने व्याध की सराहना की तथा भगवान शंकर ने दो पुष्प विमान भेजकर बहेलिया तथा मृग परिवार को शिवलोक का अधिकारी बनाया।