जया एकादशी ब्रत की कथा
एक समय की बात है। इन्द्र की सभा में माल्यवान नामक गन्धर्व गीत गा रहा था, परन्तु उसका मन अपनी नवयौवन सुन्दरी में आसक्त था। अतःएव स्वर-लय भंग हो रहा था। यह लीला इन्द्र को बहुत बुरी तरह खटकी, तब उन्होंने क्रोधित होकर कहा-हे दुष्ट गंधर्व! तू जिसकी याद में मम्न है वह ओर तू पिशाच हो जाए। इंद्र के शाप से वे हिमालय पर पिशाच बनकर दुःखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। दैवयोग से एक दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। वह दिन फल फूल खाकर उन्होनें व्यतीत किया। दूसरे दिन सुबह होते ही ब्रत के प्रभाव से उनकी पिशाच देह छूट गई और अति सुंदर देह धारण कर स्वर्गलोक को चले गए।