अक्षय तृतीया या आखातीज व्रत की कथा
अत्यन्त प्राचीन काल की बात है। महोदय नामक एक वेश्य कुशावती नगरी में निवास करता था। सौभाग्यवश महोदय वेश्य को एक पंडित द्रारा अक्षय तृतीया के ब्रत का चिवरण प्राप्त हुआ। उसने भक्ति भाव से नियमपूर्वक ब्रत रखा। व्रत के प्रभाव से वह वेश्य कुशाबती नगरी का महाप्रतापी और शक्तिशाली राजा बन गया। उसका कोष हमेशा स्वर्ण मुद्रार्आ, हीरे-जवाहरातों से भरा रहता था। राजा स्वभाव से दानी भी था। वह उदार मन होकर बिना सोचे समझे दोनों हाथों से दान देता था। एक बार राजा के वैभव ओर सुख-शान्तिपूर्ण जीवन से आकर्षित होकर कुछ जिज्ञासु लोगों ने राजा से उसकी समृद्धि ओर प्रसिद्धि का कारण पूछा।
राजा ने स्पष्ट रूप से अपने अक्षय तृतीया ब्रत की कथा को सुनाया और इस व्रत की कृपा के बारे में भी बताया। राजा से यह सुनकर उन जिज्ञासु पुरुषों और राजा की प्रजा ने नियम ओर विधान सहित अक्षय तृतीया ब्रत रखना प्रारम्भ कर दिया। अक्षय तृतीया ब्रत के पुण्य प्रताप से सभी नगर-निवासी , धन-धान्य से पूर्ण होकर वैभवशाली ओर सुखी हो गये। हे! अक्षय तीज माता जैसे आपने उस वैश्य को वैभव-सुख ओर राज्य प्रदान किया वैसे ही अपने सब भक्तों एवं श्रद्धालुओं को धन-धान्य और सुख देना; सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना। हमारी आप से यही विनती है।