मौन की परिभाषा मौन से जानो तुम हो कौन – Definition of silence Know who you are by silence
एक बार एक मछली मार अपना काँटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली उसके काँटे में नहीं फँसी थी। उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने काँटा गलत जगह डाला हो और यहाँ कोई मछली ही न हो। उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके काँटे के आसपास बहुत- सी मछलियाँ थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सारी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं जबकि काँटे में दाना भी लगा है। क्या कारण हो सकता है? वह ऐसा सोच ही रहा था कि एक राहगीर ने उससे कहा-लगता है भैया यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो।
इस तालाब की मछलियाँ अब काँटे में नहीं फँसती। इस पर उसने हैरत से पूछा- क्यों, ऐसा क्या हुआ है यहाँ? राहगीर बोला- पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत आकर ठहरे थे। उन्होने यहां “मौन की महत्ता’ पर प्रवचन दिए थे। उनकी वाणी में इतना तेज़ था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ बड़े ध्यान से सुनतीं। यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए काँटा डालकर बैठता है तो ये “मौन’ धारण कर लेती हैं। जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो काँटे में फँसेगी कैसे? इसलिए बेहतर यहीं है
कि आप कहीं और जाकर काँटा डालो। उसकी बात मछलीमार की समझ में आ गई और वह वहां से चला गया।
कितनी सही बात है यह, जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे? यह बात मछलियों की तरह उन व्यक्तियों को
भी समझ लेनी चाहिए जो अपनी बकबक करने की आदत के चलते स्थान और समय का ध्यान रखे बिना अपना मुँह खोलकर मुसीबत में फँस जाते हैं।
गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में इस बात का महत्व उस समय और बढ़ जाता है जब न जाने कौन अपना काँटा डाले आपको फँसाने के चक्कर में हो। जैसे ही आपने मुँह खोला, आप फँसे। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए ज़रूरी है कि हम मौन का अभ्यास करें। धीरे-धीरे अभ्यास से हम सीख जाएं।