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ye souda satbhay kro parbhat re

kabir

Kabir ke Shabd

ये सौदा सतभाय करो प्रभात रे।
तन मन रत्न अमोल बटाऊ जात रे।।
बिछुड़ जाएंगे मीत मता सुन लीजिये।
फेर न मेला होए, कहो क्या कीजिए।।
शील सन्तोष विवेक, दया के धाम हैं।
ज्ञान रत्न गुलजार, सँघाती राम हैं।।
धर्म ध्वजा फरकत, फरहरे लोक रे।
ता मद्य अजप्पा नाम सुसौदा रोक है।।
चलै बनजवा ऊंट,हूट गढ़ छोड़ रे।
हर हारे कहता दास गरीब, लोग जमा डाँड़ रे।।
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