Search

“माता-पिता की सेवा: एक पवित्र कर्तव्य”

माता-पिता की सेवा

पूर्व काल में राजा जनक की मिथिला नगरी में राजा जनक के समान ही ज्ञानी व्यक्ति रहा करते थे। उनकी कीर्ति
सुनकर महर्षि विश्वामित्र उनसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए आये। परन्तु धर्म व्याध ने ही उन्हें वास्तविक ज्ञान का उपदेश दे दिया। ‘कौशिक जी अति प्रसन्न हुए और उन्हें आश्चर्य भी हुआ कि ऐसा महापापी व्याध को ऐसा ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ। व्याध ऋषि विश्वामित्र के विचारों को ताड़ गया और उनसे बोला–मैंने तुम्हें जो ज्ञान प्रदान किया है,

parents service story in hindi
वह कहानी का ज्ञान है। अब करनी का ज्ञान देखने के लिए मेरे घर चलने की कृपा कीजिए,व्याध उन्हें अपने घर ले गया। व्याध के माता-पिता ने खड़े होकर ऋषि विश्वामित्र का स्वागत किया। व्याध ने अपने माता-पिता को स्नान कराया। पीढ़े पर बैठाकर उनकी पूजा की और पंखा करते हुए उन्हें भोजन कराया और फिर स्वयं बिछौना बिछाकर उन्हें बैठाया। यह सब देखकर ऋषि विश्वामित्र को आएचर्य चकित रहना पड़ा । सवेरे उठकर उसने अपने माता-पिता से आशीर्वाद प्राप्त किया और अपने काम पर जाने की आज्ञा माँगी।
 माता-पिता ने आशीर्वाद दिया बेटा तू धर्मात्मा हो, धर्म तेरी हमेशा रक्षा करे और तेरी लम्बी आयु हो।उनकी आज्ञा पाकर व्याध चल पड़ा।तभी ऋषि विश्वामित्र बोल पड़े, संध्या-वन्दन, देव दर्शन आदि नित्य कर्म किये बिना तू क्‍यों जा रहा है? व्याध ने बताया हे मुनिश्वर! देवता यज्ञ, वेद या सभी सत्कर्म एक मात्र मेरे माता-पिता हैं। मैंने अपनी पत्नी , पुत्र, मित्रादि को इनकी सेवा में ही लगा रखा है। हे मुनिश्वर! मेरा यह सिद्धान्त है कि जिसे कल्याण की इच्छा हो, वह अपने माता-पिता की सेवा करे।धर्म व्याध की माता-पिता की भक्ति देखकर ऋषि विश्वामित्र आनन्द विभोर हो गये और सानन्द अपने आश्रम को लौट गये ।
Share this article :
Facebook
Twitter
LinkedIn

Leave a Reply