भारत वर्ष की सती
भारत की सती नार पर, दुनिया है बलिहार।
उदय न सूरज फिर हुआ, हो गया हा-हाकार॥
प्राचीन काल की बात है कि कौशिव नाम का एक ब्राह्मण अतिष्ठानपुर में रहता था। वह अत्यन्त क्रोधी, निष्ठुर प्रकृति का एवं कोढ़ी व्यक्ति था। उसकी पत्नी शाण्डिली एक पतिव्रता और निष्ठावान औरत थी। वह अपने पति को हर प्रकार से खुश रखने का प्रयत्न किया करती थी।
एक बार वह ब्राह्मण एक सुन्दर वैश्या को देखकर उस पर मोहित हो गया और उस वैश्या को अपने घर ले चलने के लिए अपनी पत्नी से आग्रह करने लगा। उसकी पत्नी ने अपने पति को तरह-तरह से समझाने की कोशिश की परन्तु वह मानने को तैयार नहीं हुआ। विवश होकर वह अपने पति को अपने कंधे पर बैठाकर साथ में कुछ रुपये लेकर रात के अंधेरे में वैश्या के कोठे पर ले गई। मार्ग में शूलविद्ध अणिमाण्डल्य ऋषि तपस्या कर रहे थे। अंधेरे में उन्हें उस कोढ़ी ब्राह्मण के पैर का धक्का लगा। इस पर माण्डव ऋषि ने बिगड़ कर श्राप दे डाला कि प्रातःकाल सूर्योदय होते ही इस नराधम का प्राणान्त हो जायेगा। यह श्राप सुनकर सती घबरा गई।
उसने विचार किया कि यदि प्रातःकाल सूर्योदय न हो तो मेरे पति के प्राण बच सकते हैं अन्यथा नहीं । यह विचार कर वह अपने पतिव्रता के बल पर बोली-“जब तक मैं न कहूँ तब तक सूर्योदय नहीं होगा।” पतिव्रता स्त्री कैसे झूठी हो सकती थी?
दस दिन तक सूर्य नहीं निकला। समस्त संसार में हाहाकार मच गया । सभी देवता चिन्तित होकर जगत नियन्ता ब्रह्मजी के पास गये और उनको संसार के इस महान कष्ट के सम्बन्ध में बताया। ब्रह्माजी ने उन्हें सती के प्रभाव का सारा वृतान्त सुनाकर प्रसिद्ध अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूइया को प्रसन्न करके इस कष्ट का निवारण करने को प्रार्थना करने को कहा।
सभी देवता अत्रि मुनि के आश्रम पर गये और सब बातें बताईं। अनुसूहया जी संसार की भलाई की इच्छा से उस ब्राह्मण पत्नी के पास जाकर बोली- हे देवी। तुम अपना संकल्प त्याग दो, नहीं प्रलय होने में देर नहीं है। सूर्योदय होने पर तुम्हारे पति के प्राण त्यागते ही मैं उन्हें अपनी सतीत्व शक्ति से पुनः जीवित कर दूँगी। उनका शरीर भी निरोगी हो जायेगा।
अनुसूइया जी की बात को सती ने मान लिया। सूर्योदय हुआ। सूर्योदय होते ही सती के पति का मृत शरीर जमीन पर गिर पड़ा। अनुसूइया के सतीत्व के प्रताप से वह मृत ब्राह्मण पुनर्जीवित एवं रोग रहित तथा युवा बनकर उठ बैठा। उसके समस्त मानव रोग भी समाप्त हो गए। देवता लोग अनुसूड़या जी एवं सती शाण्डिली को अनेक प्रकार के वर प्रदान कर स्वर्ग को वापिस चले गये।
इस भारतवर्ष को पतिव्रता सती माता के धर्म का चमत्कार जिसने सूर्य देव को उदय होने से रोक दिया। भारतवर्ष की वर्तमान महिलाएँ सती शाण्डिली के आदर्श पर चलकर संसार की महिलाओं को बताना चाहिए कि अभी भी भारतीय महिलाएँ पतिव्रत का पालन करती हैं। भारत की सती नारी के सम्बन्ध में फारसी के सुप्रसिद्ध कवि शेख हाफिज शोराज जी कहते हैं-
हम चू हिन्दू जन कसे दर आशकी दीवान नेस्त।
शोक तनवर शमा मुरदा कार हर परवाना नेस्त॥
अर्थ- ज्योति जिस समय जलती है तब पतंगे उस पर आकर जल मरते हैं। जब ज्योति बुझ जाती है तब पतंगे नहीं आते। हिन्दू महिलाएं धन्य हैं जब उनके पति रूपी ज्योति बुझ जाती है तब वे भी अपने मृतक पति के साथ जीवित अवस्था में ही जलकर सती हो जाती हैं।