गृहस्थियों की सभा में सन्यासी जी
झूंठा ज्ञान बघारते, धर त्यागी का भेष।
गंगा तरंग मन में बता, देते पापी ठेस॥
एक शहर में एक सन्यासी प्रवचन दे रहे थे। उनके व्याख्यानों को सभी स्त्री-पुरुष सुन रहे थे। सन्यासी जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, उज्जैन, बनारस आदि में जाकर वहाँ गंगा, यमुना, गोदावरी में स्नान करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि बहनों और भाइयों तुम्हारे शरीर में गंगा यमुना बह रही है। जब तुम्हारे शरीर रूपी घट के अन्दर गंगा यमुना ठाठें मार रही है, तब भूतल पर बहने वाली गंगा यमुना में स्नान करने की क्या आवश्यकता है? अपने हृदय की गंगा में प्रतिदिन खूब डुबकी लगा लगाकर स्नान करो।
महात्माजी का व्याख्यान समाप्त हुआ। जनता अपने-अपने घरों को चली गयी। महात्माजी उसी नगर के एक भक्त के यहाँ ठहरे हुए थे। वे भी उसके यहाँ चले गये। जिस भक्त के यहाँ स्वामीजी ठहरे हुए थे, उस भक्त को स्वामीजी का आज का व्याख्यान अच्छा नहीं लगा।
उसने सोचा कि मन में गंगा यमुना बह रही है तो इस बात की परीक्षा स्वामीजी पर ही क्यों न की जाये। स्वामीजी भोजन करके आराम करने के लिए एक कमरे में चले गये। स्वामीजी अन्दर से कमरे का दरवाजा बन्द कर सो गए। आधा घंटे बाद महात्मा के सेवक ने नगर के दो चार भले व्यक्तियों को जो स्वामीजी के आज के व्याख्यान में भी थे, उन्हें बुलवाया और उनसे कुछ कानाफूसी के पश्चात् उस कमरे का दरवाजा बाहर से ताला लगाकर बन्द कर दिया। गर्मी खूब पड़ रही थी, गर्म लू चल रही थीं। घरों से बाहर निकलना कठिन हो रहा था। स्वामी जी को प्यास लगने लगी। वे प्यास से व्याकुल होकर दरवाजे को खोलने के लिए चिललाने लगे। परन्तु किसी ने दरवाजा नहीं खोला। सब आदमी चुपचाप बैठे रहे। स्वामीजी ने फिर आवाज लगाई भाई दरवाजा खोलो प्यास के कारण मेरा दम घुट रहा है। परन्तु दरवाजा नहीं खोला गया। स्वामीजी दरवाजे पर लात घूंसे मारते हुए चिललाने लगे अरे मूर्खों! दरवाजा खोलो।प्यास के कारण मेरा दम घुट रहा है।
अन्त में उनके सेवक ने दरवाजे का ताला खोल दिया। दरवाजा खुलते ही स्वामीजी कमरे में से भयंकर क्रोध धारण किये हुए निकले और अपने सेवक पर क्रोधित होकर बोले, किस पाजी ने दरवाजा बन्दकर मेरे साथ मजाक किया है। उसको शर्म आनी चाहिए। मैं प्यास के कारण मरा जा रहा हूँ। सेवक ने हाथ जोड़कर स्वामीजी से कहा- महाराज! क्रोध को त्याग दीजिए। आपके पास तो जल था फिर पिया क्यों नहीं? स्वामी जी बोले आरे मूर्ख अन्दर पानी कहाँ था?
सेवक बोला–महाराज! प्रातःकाल अपने व्याख्यान में आपने कहा था कि घट में ही गंगा यमुना बह रही है, उसमें स्नान करो। जब आपके घट में गंगा यमुना प्रवाहित हो रही है तो फिर आप प्यासे क्यों मरें? खूब पेट भर कर पानी पी लेना चाहिए था।यह बात सुनकर स्वामीजी लज्जा में डूब गये और अपना डंडा व कमण्डल उठाकर चलते बने।
प्राय: देखने में आ रहा है कि आजकल नकली संन्यासी यत्र-तत्र गृहस्थियों में जाकर वेदांत के गूढ़ विषयों पर भाषण झाड़ते हुए गृहस्थियों को उनके गृहस्थ धर्म से वंचित कर रहे हैं। मन में गंगा यमुना उन परमहंस ज्ञानियों के लिए है जो कर्म उपासना से छुटकारा पाकर ज्ञान मार्ग में प्रवेश कर चुके हैं।
आम गृहस्थियों के उद्धार के लिए पृथ्वी-पर बहने वाली गंगा, यमुना आदि नदियाँ ही हैं। जिनमें स्नान करने से गृहस्थियों को ज्ञान मार्ग की प्राप्ति हो सकती है गृहस्थियों से मेरी प्रार्थना है कि वे ऐसे मिथ्या व्याख्यानों को कदापि न सुनें और न ही ढोंगी ज्ञानियों को अपने घर में आश्रय प्रदान करें।