kabir Ke Shabd
सन्तों का देश निराला हे, के जाणै नुगरी दुनिया।।
सन्त मिले सत्संग बतलावें जी, नुगराँ ने नहीं सत्संग भावै जी।
उनके घट में लग रहा ताला हे।।
त्रिवेणी घर एक तख्त हज़ारा जी, सोहंग बाल चले चौधारा जी।
उड़ै ना गर्मी ना पाला हे।।
अमरापुर गुरू का देश बताया जी, धरणी आकाश नहीं नर की काया जी।
उड़ै बिन सूरज उजियाला हे।।
दसवें महल में कोए गुरुमुख जावै जी, सूरत शब्द मिले उड़ै लेट लगावै
जी उड़ै काल करै सै टाला हे।
नाथ गुलाब अगम तैं भी आगै जी चार बजें जब गुरुमुख जागै जी।
उड़ै भानीनाथ रुखाला हे।।