संकष्ट श्री गणेश चतुर्थी व्रत
भविष्य में ऐसा कहा गया है कि जब-जब मनुष्यों को बड़ा भारी कष्ट प्राप्त हों, संकटों और मुसीबतों से घिरा महसूस करें या निकट भविष्य की आशंका हो, तो उस समय संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। इससे इस लोक और परलोक दोनों में सुख मिलता है, ब्रत के सब कष्ट दूर हो जाते हैं। धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मनुष्य मनोवांछित फल पाकर अंत में गणपति को प्राप्त होता है। यहां तक कि इस ब्रत के करने से विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन, पुत्रार्थी को पुत्र ओर रोगी को आरोग्य की प्राप्ति होती है। महाराज युशिष्ठिर ने इस ब्रत के प्रभाव से युद्ध में बैरियों को मारकर अपना राज्य पा लिया था। जब रावण को बालि ने बांध लिया था, तब उमने इसी ब्रत को करके भगवान् गणेश जी की कृपा से अपना राज्य फिर पा लिया था। इसी ब्रत के प्रभाव से हनुमान ने सीता का पता लगाया था। त्रिपुर का मारने के लिए शिवजी ने इस ब्रत को किया था।
दमयंती ने इसी ब्रत को करके अपने पति राजा नल का पता पाया था। तीनों लोकों की विभूति चाहने वाले इंद्र ने इसी ब्रत को अपनाया था। पार्वती ने शिवजी को पति रूप में इसी ब्रत के प्रभाव से पाया। पूजन विधि-विधान : यूं तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी ब्रत प्रत्येक मास के कष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है,
लेकिन माघ, श्रावण, मार्गशीर्ष और भाद्रपद में इस व्रत के करने का विशेष माहात्मय हे। ब्रती इस दिन स्नानादि नित्य कर्मो से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत, गंध और जल लेकर संकल्प करें कि अमुक मास, अमुक पक्ष और अमुक तिथि में विद्या, धन, पुत्र, पोत्र प्राप्ति, समस्त रोगों से मुक्ति और समस्त संकटों से छुटकारे के लिए श्रीगणेशजी की प्रसन्नता के लिए मैं संकष्ट चतुर्थी का ब्रत करता हूं।
गणेश जी का धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली आदि से षोडशोपचार पूजन सायंकाल में करें। पूजा के अंत में 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इसमें से 5 गणपति के सम्मुख भेंट कर शेष ब्राह्मणों और भक्तों में बांट दें। साथ में दक्षिणा भी दे दें। रात में चंद्रोदय होने पर यथाविधि चंद्रमा का पूजन कर क्षीरसागर आदि मंत्रों से अर्घ्यदान करें। तत्पश्चात् गणपति को अर्घ्य देते हुए नमस्कार करें और कहें कि हे देव! सब संकटों का हरण करें।
अब आप फूल और दक्षिणा समेत पांच मोदकों .को मेरी आपत्तियां दूर करने के लिए स्वीकारें। वस्त्र से ढका पूजित कलश, दक्षिणा ओर गणेश जी की प्रतिमा आचार्य को समर्पित कर दें। फिर भोजन ग्रहण करें। उल्लेखनीय है कि भादों मास की शुक्ल चतुर्थी को चंद्रदर्शन निषेध किया गया है, क्योंकि लोक विश्वास है कि ऐसे चोथ के चांद देखने से झूठा कलंक लगता है। इस ब्रत के उद्यापन करने का भी विधान हे।