Kabir ke Shabd
सजनी घट के पर्दे खोल।।
भूल भर्म में सब जग बहता काल कर्म की पड़ी है रोल।
विषय वासना तजदे प्यारी,
ये है भारी भूल।।
मल व आक्षेप आवरण तारो, इनका चढ़ा है खोल।
नाम रसायन ले सद्गुरु का,
ना लागै विष का मोल
आंख कान तूँ बन्द करके हे, मुख से कुछ ना बोल।
अंतर मन मे आपा टोह ले,
काहे जगत रही डोल।।
सद्गुरु ताराचंद की शरणगहो हे, पाओनाम अनमोल।।
कंवर शरण सद्गुरु की पा के,
निर्भय करै किलोल।।