साधु की साधुता
एक वन में एक महात्मा रहा करते थे। एक बार वह एक सुन्दर घोड़े पर चढ़ कर शहर की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक लंगड़ा भिखारी का रूप धारण कर डाकू बैठा था। जब महात्माजी उसके पास से गुजरने लगे तो वह रोने लगा। महात्माजी को उस पर दया आ गई और उसे अपने घोड़े पर बैठा दिया और स्वयं पैदल चल पढ़े। थोड़ी दूर जाने पर डाकू ने घोड़े को जोर की ऐड लगाकर कहा मैं डाकू हूँ और तुम्हारा घोड़ा अपन साथ ले जा रहा हूँ। महात्माजी ने कहा तुम घोड़ा ले जा सकत हो परन्तु यह बात किसी को मत बताना। डाकू ने पूछा ऐसा करने से आपको क्या लाभ हागा।
महात्माजी ने कहा यह पता चल जाने पर काई भी व्यक्ति गरीबों की सहायता करने को आगे नहीं आयगा। डाकू को यह बात सुनकर बड़ी लज्ज़ा महसूस हुई आर वह घोड़े को महात्माजी के निवास स्थान पर बाध आया। इस सच्चाई के प्रभाव से उसने डैकती डालने का काम छोड़ दिया।