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sab rogo ki ek dawai par khani itni asan nhi

kabir

Kabir ke Shabd

सब रोगों की एक दवाई, पर खानी इतनी आसान नहीं।
जो खावै जीवत मर जावै, फेर जीवन का काम नहीं।
मिले सहज में कोय लेलो,लगता कोय दाम नहीं।
कंवर धारणा निहचय करले, बिन इसके कल्याण नहीं।।
जाके पियें से अमर हो जाए, हरि रस ऐसा रे।
आगे-२ दो जले रे, पीछे हरियल होए।
बलिहारी उस वृक्ष की रे, जड़ काटे फल होए।।
हरि रस महंगे मोल का रे, पीवै विरला कोय।
हरि रस को तो वो जन पीवै, धड़ पै शीश न होए।।
भक्ति करो तो कुल नहीं रे,कुल बिन भक्ति न होए।
दो घोड़ों के ऊपर हमने चढ़ा ना देखा कोय।।
भक्ति करो और घुल रहो रे, अड़े रहो दरबार।
दो घोड़ां के कौन चलावै, चारों पर असवार।।
हरि रस जिसने पी लिया रे, हुआ भव दुःख का नाश।
दास कबीर ने ऐसा पिया, और पीवन की आश।।
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