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संकल्प और कायाकल्प || resolution and rejuvenation ||

संकल्प और कायाकल्प

एक समय लंदन का वॉलवर्थ उपनगर अपराधियों की बस्ती के रूप में जाना जाता था। यहां के अधिकांश निवासी निर्धन और अशिक्षित थे। इसी वजह से यहां अपराध का ग्राफ काफी ऊपर था। बस्ती के इस प्रदूषित माहौल ने बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लिया था। छोटे-छोटे बच्चे भी गलत कार्यों में शामिल थे। ऐसे में एक दिन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका एक युवक आया।

उसने पहले बस्ती के लोगों से परिचय बढ़ाया। धीरे-धीरे उसके साथ वहां के लोग घुल-मिल गए। जब सभी उसे पसंद करने लगे, तब उसने अपने छोटे से कमरे में, पहले बस्ती के बच्चों को पढ़ाना आरंभ किया। वहां उन्हें दैनिक जीवन की छोटी, पर महत्वपूर्ण बातें बताता। वह उदाहरण देकर अपनी बातों की पुष्टि करता। धीरे-धीरे वह बच्चों को उत्तम संस्कार देने लगा। बस्ती के लोगों को अहसास हुआ कि यह व्यक्ति उनके बच्चों को सही शिक्षा दे रहा है, क्योंकि उन लोगों ने देखा कि बस्ती के बच्चों में कार्य व आचरण दोनों स्तर पर काफी सुधार हो रहा है।

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इससे बस्ती के लोगों में युवक के प्रति विश्वास बढ़ गया। युवक ने अपने काम को आगे बढ़ाते हुए लोगों से कहा, *‘हर रविवार आप सभी मेरी कक्षा में आया करें।’* लोग तैयार हो गए। युवक ने उन्हें बताया कि वे सप्ताह में एक दिन कोई अपराध न करें। युवक की अच्छाइयों से अभिभूत लोगों ने इसे भी स्वीकार कर लिया। फिर लोगों ने खुद ही तय किया कि वे चार दिनों तक कोई अपराध नहीं करेंगे।

धीरे-धीरे उस युवक ने बस्ती का पूर्ण कायाकल्प कर दिया। अब वॉलवर्थ के लोग सभ्य समाज का एक अंग बन गए। यह बात हमें बताती है कि यदि संकल्प दृढ़ हो तो सफलता के द्वार स्वयं खुलते जाते हैं। वह समाज सुधारक बाद में भारत आया।

उसे ‘दीनबंधु’ सी. एफ. एंड्रयूज के नाम से जाना गया।
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