रिश्ते – अपने या पराए
सुनीता तुमने मेरे कँगन देखे क्या…
सुबह से ढूँढ रही हूँ मिल ही नही रहा है कल रात तो उतार कर यहीं रखा था .. पता नहीं कहाँ गायब हो गया। माँ ने कँगन ढूँढते हुये सुनीता से कहा…
सुबह से ढूँढ रही हूँ मिल ही नही रहा है कल रात तो उतार कर यहीं रखा था .. पता नहीं कहाँ गायब हो गया। माँ ने कँगन ढूँढते हुये सुनीता से कहा…
मुझे क्या पता माँ…देखो तुमने ही कहीं रखा होगा और भूल गयी होगी तुम्हारे ये भारी भरकम कँगन तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नही है ऊपर से ज़रा अपना साइज देखो माँ… मैं पहनने की कोशिश भी करूँगी तो वापस नीचे ही उतर आयेगा…
हाँ… दीदी को पूछ लो वो गयी थी सुबह तुम्हारे कमरे मे.. माँ ने कहा- रहने दे सुनीता तेरी दीदी अनीता वैसे भी बहुत दुखी है… मैं ये सब पूछूँगी तो उसे और बुरा लगेगा..दहेज के लालची उसके ससुराल वालों ने उसे घर से ही निकाल दिया..बेचारी मेरी बच्ची..
माँ देख लो कहीं दीदी तुम्हारे गहनों से ही तो अपना दहेज नही जुटा रही है….सुनीता ने ठहाके लगाते हुए कहा..
सुनीता की जोर की हँसी सुन कर कल्पना रसोई से बाहर आयी और हँसते हुए बोली क्या हुआ…
सुनीता किस बात पर इतनी हँसी आ रही है… मुझे भी तो बताओ…
सुनीता की जोर की हँसी सुन कर कल्पना रसोई से बाहर आयी और हँसते हुए बोली क्या हुआ…
सुनीता किस बात पर इतनी हँसी आ रही है… मुझे भी तो बताओ…
सुनीता ने कहा- अरे भाभी …बेचारी माँ सुबह से परेशान है तो मैने…. इससे पहले सुनीता कुछ कहती माँ जी ने कल्पना से ही सवाल कर दिया कि बहु तुमने मेरे कँगन देखे क्या…
कल्पना ने कहा – नहीं माँजी मैने तो नही देखे…
देखिये शायद आप कहीं रख कर भूल गयी होंगी…
देखिये शायद आप कहीं रख कर भूल गयी होंगी…
माँ ने कहा- इतनी भुल्लकड़ नही हूँ मैं… तुम आयी तो थी सुबह मेरे कमरे में झाड़ू लगाने.. तो तुमने देखा ही होगा
कल्पना का अब भी वही जवाब था तब तक अनीता बाहर से आयी और बोली- माँ क्या बेमतलब के सवाल पूछ रही हो..भाभी ने लिया भी होगा तो तुम्हे बताएगी क्या…
कल्पना का अब भी वही जवाब था तब तक अनीता बाहर से आयी और बोली- माँ क्या बेमतलब के सवाल पूछ रही हो..भाभी ने लिया भी होगा तो तुम्हे बताएगी क्या…
सुनीता ने बिना एक पल गँवाये तुरंत कहा अगर भाभी को चाहिये तो वो माँ से माँग लेगी… ऐसे कभी भी भाभी किसी का कोई सामान नही लेती…
अनीता ने फिर से कहा रहने दो तुम अभी बच्ची हो ये घर गृहस्थी के दाँव पेंच तुम्हारी समझ के बाहर है..जाओ अंदर और पढाई करो..
पर मैं तो… इससे पहले कि सुनीता कुछ और कहती माँ ने उसे डाँट कर अंदर भेज दिया और कल्पना के करीब आ कर बोली देखो बहु अगर तुमने लिया है तो बता दो… तुम्हे चाहिये तो मैं बनवा दूँगी पर इस तरह चोरी ना करो…
कल्पना डबडबायी आँखो से माँ जी को देखती रह गयी और सोचने लगी कि बिना किसी स्वार्थ के आज तक जिसकी सेवा करती आज उन्होने ही मुझ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा दिया…
मैने तो इनके इलाज के लिए अपने माँ के दिये गहने तर गिरवी रख दिये थे…और करती भी क्या बाबूजी तो पहले ही स्वर्गवासी हो चुके थे और मेरे पति भी यहाँ नहीं थे..
पेट में दर्द की वजह से माँजी का तत्कालीन इलाज करवाना पड़ा और उस वक्त मेरे पास उतने पैसे नही थे तो मुझे जो सही लगा मैने किया माँ के दिये गहने तो मेरे पति ने वापस दिला दिये थे पर अगर माँजी को कुछ हो जाता तो मैं क्या करती…अपने खयालो में खो़यी कल्पना अपने आँसू ना सम्भाल पायी और रोने लगी…
तभी अनीता ने कहा- हाँ ….
अब रोना धोना शुरू कर दो..यही तो तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है..जब कुछ गलती हो तो रोने लगो…
तभी अनीता ने कहा- हाँ ….
अब रोना धोना शुरू कर दो..यही तो तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है..जब कुछ गलती हो तो रोने लगो…
अपने मोह जाल में मोहन भैया को फँसाया और बिना दहेज के शादी कर ली … खुब समझती हूँ मैं तुम बाप बेटी को… माँ तो पहले ही चल बसी थी.. पिता ने भी बेटी को खुला छोड़ दिया कि जाओ किसी को पसंद कर के मुफ्त में शादी कर लो…
खुदगर्ज कहीं के…
खुदगर्ज कहीं के…
अनीता कल्पना पर इल्ज़ाम लगाये जा रही थी..ऐसा नही था कि कल्पना जवाब नही देे सकती थी … पर वो तो माँ जी की बेरूखी देख कर दुखी थी…
इधर सुनीता ने भी फोन करके अपने भैया मोहन को सब कुछ बता दिया..
इधर सुनीता ने भी फोन करके अपने भैया मोहन को सब कुछ बता दिया..
मोहन भी भागा -भागा घर आया और वहीं चौखट पर ही जम गया… उसने सब कुछ सुना जो अनीता कल्पना को सुना रही थी उसे तो हैरानी थी कि माँ ने कल्पना पर चोरी का इल्ज़ाम कैसे लगा दिया…
जैसे ही अनीता ने कल्पना के साथ साथ उसके घरवालों पर भी जालसाजी का इल्ज़ाम लगाना शुरू किया और कल्पना के कमरे की तलाशी लेने के लिए आगे बढ़ी वैसे ही मोहन ने जोर की आवाज लगा कर उसे रोका और कहा – अनीता जो तुम्हारे मन में आ रहा है तुम बोले जा रही हो..तुम्हे जरा भी लिहाज नही है कि वो तुम्हारी भाभी है..बड़ी है तुमसे…
देख लो माँ ….अब भैया भी मुझे ही सुनायेंगे…कहते हुये अनीता ने रोना शुरू कर दिया माँ ने भी गुस्से से मोहन को डाँटा और कहा ये पहले से ही दुखी है तुम इसे अब कुछ ना कहो…
गलती तुम्हारी बीवी की है उससे बात करो…
मोहन ने कहा- वाह मां… जब तक तुम्हे अच्छी लगी तब तक ये तुम्हारी बहु रही और आज जरा सी खटक क्या गयी तुमने तो इससे रिश्ता ही तोड़ लिया…
मोहन ने कहा- वाह मां… जब तक तुम्हे अच्छी लगी तब तक ये तुम्हारी बहु रही और आज जरा सी खटक क्या गयी तुमने तो इससे रिश्ता ही तोड़ लिया…
अब ये सिर्फ मेरी पत्नी ही रह गयी बस…
मोहन कल्पना के पास गया और बोला तुम परेशान मत हो… मुझे पूरा विश्वास है तुम पर…
मोहन कल्पना के पास गया और बोला तुम परेशान मत हो… मुझे पूरा विश्वास है तुम पर…
मैं हूँ साथ तुम्हारे…
तभी बाहर से आवाज आई… सबने मुड़ कर देखा तो बाहर जौहरी खड़ा था…माँ ने
तभी बाहर से आवाज आई… सबने मुड़ कर देखा तो बाहर जौहरी खड़ा था…माँ ने
पूछा- क्या बात है सेठजी..आज यहाँ कैसे आना हुआ… लगता है आप तक भी खबर पहुँच ही गयी कि मेरे सोने के कँगन…..
जौहरी ने कहा – अम्मा जी वही तो मैं भी कह रहा हूँ..आपने जो सोने के कँगन भिजवाए थे ना अनीता बिटिया से बेचने के लिए ..जल्द बाजी मे बिटिया उसकी बिक्री की रसीद लेना ही भूल गई…
मैं इधर से गुजर रहा था तो सोचा आपको दे दूं…
मैं इधर से गुजर रहा था तो सोचा आपको दे दूं…
मोहन और कल्पना ने सबसे पहले मां की तरफ ही देखा। मां भी शून्य सी खड़ी रह गयी कि जिसे अपना समझ रही थी वही मेरा घर तोड़ने पर लगी हुई है…
मोहन ने जौहरी को कहा कि मां अभी कँगन नही बेचेंगी आप चलो मैं दुकान पर आता हूं…
जौहरी के जाते ही अनीता ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर माँ के सामने रख दिया और सिर झुकाए खड़ी हो गई
मां सीधे कल्पना के पास आ गयी और कहने लगी मुझे माफ कर दो बेटा मैने तुम्हे गलत समझा…
जौहरी के जाते ही अनीता ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर माँ के सामने रख दिया और सिर झुकाए खड़ी हो गई
मां सीधे कल्पना के पास आ गयी और कहने लगी मुझे माफ कर दो बेटा मैने तुम्हे गलत समझा…
मैं अनीता की बातों मे आ गयी थी.. मैं समझ गयी कि इसका घर भी इसके चाल चलन की वजह से ही टूटा होगा.. तुम भूल जाओ आज जो कुछ भी हुआ और मुझे माफ कर दो बहु…
कल्पना इस कदर हतास हो चुकी थी कि उसने मांजी को जवाब दे ही दिया और कहा- मां… आप क्यों माफी माँग रही हैं….आपने तो आज मेरे आँखो पर पड़ा पर्दा हटा दिया.. मैं तो आपको अपनी मां समझती थी पर आपने बता दिया कि बहु कभी बेटी नही बन सकती…मेरे कर्मों का बहुत अच्छा फल दिया है आपने…. आपने जो किया बहुत अच्छा किया…आपने आज एहसास करा दिया कि सिर्फ अपना खून ही अपना होता है बाकी तो सब पराये ही होते है मैं चाहकर भी आज का दिन कभी नही भूल पाउंगी…
आज किसी और की बातों में आकर आपने मुझ पर विश्वास नही किया और अब मेरा भी विश्वास आप पर से उठ चुका है आपके अपने परिवार के लोग जो हर कदम पर आपको सहारा दे सकते हैं, उनको आप किसी के बहकावे में आकर अपने से दूर कर दिया…
अगर कुछ टूट जाये तो उसे जोड़ना बहुत मुश्किल है, कुछ बिखर जाये तो उसे फिर से समेटा नहीं जा सकता आज मैं भी बिखर गयी हूँ और हमारा रिश्ता भी बिखर गया है अब इसे समेटने का कोई फायदा नहीं माँजी…
दोस्तों …
आपने तो सुना ही होगा बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताए.. बस यही बात मैं भी आपको बताना चाहता हूं कि बिना जाने सुने किसी के बारे में अपनी राय बनाना सही नही होता है…विश्वास के धागे बहुत नाजुक होते हैं..एक बार टूट जाये तो चाहे जितना भी बाँध लो गाँठ तो रह ही जाती है…
खैर मोहन के समझाने पर कल्पना और मां एक हो गए
मगर रिश्ते मे हमेशा को कडवाहट रहने लगी…
इसीलिए दोस्तों ध्यान दीजिए रिश्तों की डोर बेहद नाजुक होती है इनहे टूटने से बचाइए…