रस की भरी एक वाणी, तुम सुनियो ज्ञानी।।
कौन है तेरे अंदर बोले, सुगरा हो सो पद को खोले।
मत करियो अभिमानी।।
यो तेरा जीव कहाँ से रे आया, कौन पिता कौन मात कहाया।
किसकी है वो रानी।।
किसकी है वो रानी।।
सुन्न ही किसे ओर बताई, तूँ तो कहाँ से चल के आई।
वहाँ की कहो न सिठानी।।
वहाँ की कहो न सिठानी।।
ब्रह्मा विष्णु और ओंकारा, नाभि कँवल ना अगम द्वारा।
सन्तों ने बात पिछानी।।
सन्तों ने बात पिछानी।।
इस पद का कोई अर्थ निहारो, कह कबीर रविदास विचारो।
ये पद है निर्वाणी।।
ये पद है निर्वाणी।।