भजन राम रेल
राम रूप एक कारीगर ने, राम रेल तैयार करी।
प्राण पैसेन्जर त्यार करी, कुछ चलने की रफ्तार करी।।
नाड़ी तार शब्द की सिटी, स्वास का पंखा हिलता है।
इंजन आला अजब मशाला, जो सर्व धात से ढलता है।
टूटे नही गले पानी मे, नही अगन से जलता है।
करनी के डिब्बे बदले जां, पर इंजन एक ही चलता है।
धर्म की बुद्धि बना ड्राइवर, दूरबीन तीन दो चार करी।।
पाप पुण्य दो लैन बनी, जहां डिब्बे बदले जाते हैं।
नेम धर्म सुख दुख के पहिये,गाड़ी को चलाते हैं।
सत्त का सिंगल जतन जंजीरी,सुरति झटका लाते हैं।
कर्मगति के प्लेटफॉर्म पर, गाड़ी को ठहराते हैं।
भक्ति भाड़ा भर जल्दी से, सोच सोच क्यूं वार करी।।
काल गार्ड है राम की झंडी,चाहे जब ही हिलावेगा।
मनु नाम का वॉचमैन खुद डोले और डुलावेगा।
भगवद बाबू शर्म सिपाही, हुक्म से टिकट खुलावेगा।
जन्म मरण का लेखा लेके,अपना धर्म निभावेगा।
लोभी और कंगाल कुली ने,एक पैसे पे तकरार करी।।
आगै हन्डा चसै ज्ञान का, क्यूं वृथा बिजली तेज करै।
तीन पांच का मेल मिलाकर, चटक बिजली मेज करै।
कृष्ण नाम स्टेशन ऊपर, राम राज रँगरेज करै।
गुरु मानसिंह न्यू बोले, भई बैठ भाज मत हेज करै।
लखमीचन्द ने रेल मिली थी, अजब मेहर करतार तेरी।।