राजा ने गुरु किया
एक राजा के यहाँ एक सुन्दर बाग था। उसमें भाँतिभाँति के आम के पेड़ लगे हुए थे। एक दिन एक मेहतगनी उन आमों के टिकोरे देखकर घर गई और अपने पति से राजा के बाग में से आम के टिकोरे लाने के लिए कहा। उस मेहतर के पास मंत्र विद्या थी। उस मंत्र के बल से डाली नीची होकर टिकोरे देती और स्वयं ही ऊपर चली जाती।
इस तरह मेहतर बहुत से आम के टिकोरे ले आया। प्रात:काल राजा को ज्ञात हुआ कि कोई आम के टिकोरे चोरी करके ले गया है। राजा ने अपने बेटे को चोर को पकड़ने का कार्य सौंपा। राजकुमार ने बड़ी बहादुरी से उस मेहतर को खोज लिया और पकड़ कर राजा के पास ले जाकर उपस्थित कर दिया। राजा ने कहा यह तो बहुत बड़ा चोर है। इसे तो कठोर दण्ड मिलना चाहिए। राजकुमार कहने लगा पिता श्री! आपका कथन सही है। परन्तु इसके पास जो विद्या ह
उसे हमें सीख लेना चाहिए। विद्या सीखने के बाद आपको जो उचित लगे वही करना। अब राजा उच्चासन पर बैठ गया और मेहतर को नीचे बैठाकर मंत्र सिखाने लगा। लेकिन राजा को वह विद्या नहीं आयी। तब राजकुमार ने कहा विद्या ऐसे नहीं आती । आप नीचे बैठे और इस मेहतर को उच्चासन पर बैठायें। राजा ने ऐसा ही किया। अब राजा को वह विद्या आ गई। परन्तु अब मेहतर राजा का विद्यागुरु बन चुका था। इस कारण राजा ने मेहतर को कोई सजा न देकर छोड़ दिया।