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सतीत्व की रक्षा – Protection of self.

सतीत्व की रक्षा

गत महासमर में बर्मा पर जापान का अधिकार हो चुका था और ब्रिटिश-सेना फ़िर से उस पर आधिपत्य जमा रही थी। सेना के सिपाही बहुधा मदान्ध होते हैं, ऐसा ही एक गढ़याली सैनिक ( जिसने स्वय मुझे यह घटना नितान्त श्रद्धापूर्वक अपने मुँह से सुनायी थी एव जिसका नाम मैं यहाँ प्रकट करना अनुचित समझता हूँ) एक अन्धकार मयी रजनी में एक अन्य बूढ़े सिपाही को साथ लेकर  विजित प्रान्तान्तगर्त समीप के एक ग्राम में अपनी कामरिप्सा शान्त करने धुमा। दोनों सैनिक राइफलो से लैस थे। गाँव में धुसकर उन्होंने ढेखा कि एक छोटा-सा मकान है, जिसके आगे एक वृद्ध बैठा हुआ है, मकान की देहली पर एक नवयुवती सुन्दर महिला बैठी हैं, जो कि सिगार पी रही थी, मदान्ध् सैनिक ने इसी बहिन के साथ अपना मुँह काला करने का निश्चय किया। 

Women Motivational Story On Self Defenece & self protection
दोनों सैनिक मकान के द्वारपर जा पहुँचे और ज्यों ही नवयुवक सिपाही कमरे मे प्रतिष्ट होना ही चाहता था कि वह बहिन वीरतापूर्वक उठी और लोहे का एक हथियार, जिसे दाव् बोलते हैं तथा जिससे ऊँट वाले वृक्ष काटा करते हैं,उठाकर कामान्ध सैनिक पर आक्रमण करने के लिये उद्यत हो गयी। सिपाही को ऐसा प्रतीत हुआ कि ज्यों ही वह मकान के द्वार की देहली पर पैर रखेगा, त्यों ही उसका सिर धड से अलग होकर भूमि पर नाचने के लिये अवश्य वाबित होगा ! अत एव वह ठिठक गया और एक कदम पीछे हट गया।
उसने दस रुपये का एक नोट अपनी जेब से निकाला और उस बहिन को दिखाया, किंतु उत्तर में वही शस्त्र फिर उसकी ओर दोनों हाथो से दृढ़तापूर्वक पकडा हुआ घूरता हुआ दृष्टिगत हुआ! सैनिक का बल नष्ट हो गया।
पीछे खडा हुआ दूसरा बूढ़ा सिपाही उसका नाम लेता हुआ कडक कर बोला, देखता क्या है ? राइफळ तो तेरे पास है। कामान्ध सैनिक ने फिर साहस किया और सती महिला के मुँह के सामने बंदुक तानकर उसे भयभीत करना चाहा ! किंतु प्रत्युत्तर मे वही शस्र फिर ज्यों-का-त्यों तना हुआ मिला। सैनिक चाहता है, गोली मारु । महिला उद्धत है कि उसका सिर धड से पृथक् कर दूँ। पर्याप्त समय तक यही दृश्य रहा और आखिर सतीत्व के शुद्ध सकल्प के सम्मुख निर्लज काम को पराजित होना पडा। दोनों सिपाही अपना-सा मुँह लेकर अपने स्थान पर लौट गये।
यह एक अक्षरश सच्ची घटना है, आज सात-आठ वर्ष हुए है , जब मैंने इसे सुना था । मुझे इस कथा से सदैव प्रेरणा मिळती रहती है और मै इमे कभी भी भूल जाना नहीं चाहता, बहिने इसमे अवश्य ही शिक्षा प्रहण करें।
जिस हृदय में सतीत्व-रक्षा का दृढ़ संकल्प विधमान है, उसे बदूक का भय और पैसे का लालच कढापि विचलित नहीं कर सकते। रावण-सीता-सवाद की पुनरा- वृत्ति होती ही रहेगी।
मैं मन-ही-मन बहुधा वर्मा की उस सती वीर भगिनी के चरणो मे नमस्कार किया करता हूँ।
सतीत्व की जय
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