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कविता से प्राणी की रक्षा – protection of peoples from poetry

कविता से प्राणी की रक्षा

कविता या संसार में, है सुखों की खान।
कविता से ही राव ने, खूब बचाये प्राण॥ 

किसी नगर का राजा बहुत ही सज्जन और भोला था। वह अपनी प्रजा को पुत्र के समान समझता था परन्तु उसका मंत्री बहुत ही दुष्ट प्रकृति का था। वह ऊपरी रूप से राजा से प्रेम का दिखावा करता था। परन्तु हृदय में राजा से घोर शत्रुता रखता था। मंत्री के मन में इच्छा थी कि मैं राजा को किसी भी भाँति मरवाकर स्वयं राजा बन जाऊँ। राजा के कोई सन्‍तान न थी और रानी को भी मरे हुए चार वर्ष व्यतीत हो चुके थे।राजा ने दूसरी शादी भी नहीं की थी और न कोई लड़का गोद लिया था। मंत्री ने स्वयं राजा बनने के लिए राजा को मरवाने का यह अच्छा अवसर समझा। कालिया नाम का नाई राजा की हजामत बनाया करता था। एक दिन मंत्री ने कालिया नाई को अपने घर पर बुलाया।

कविता से प्राणी की रक्षा - protection of peoples from poetry
मंत्री नाई से बोला – आज जब तू राजा को हजामत बनाने जाये तो अपने उस्तरे से राजा का गला काट देना। ऐसा करने पर तुझे इनाम में एक गांव दिया जायेगा। और यदि तूने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया तो मै तुझे तेरे बाल-बच्चों सहित मरवा दूँगा। मंत्री की यह बात सुनकर नाई काँप गया तथा उसने आज राजा की गर्दन काट लेने का मंत्री से वायदा किया । जब कालिया नाईं राजा की हजामत बनाने महल में गया तो उसने आज राजा की गर्दन काट लेने का इरादा पक्का कर लिया।
 उसने राजा को महल में ले जाकर प्रणाम किया और नियत स्थान पर अपना उस्तरा, कटोरी और उस्तरा घिसने की पथरी तथा अन्य सामान रखकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद राजा साहब आये और हजामत बनवाने के लिए नाई के पास बैठ गये। नाई ने ठोड़ी के बाल भिगोने प्रारम्भ किये। उस स्थान से कुछ दूरी पर पानी का हौज भी था। उस हौज के किनारे पर एक कौवा आया। वह अपनी चोंच को पानी में डुबाकर बाहर निकालता और किनारे पर चोंच रगड़ता। उधर नाई भी कटोरी में से पानी पथरी पर डालकर अपना उस्तरा घिसने लगा ।कौआ और नाई के इस काम देखकर राजा हँस पड़े और बोले-
फिर डुबो, फिर घिसे, भर लावे पानी।
तेरे मन की बात, कालिया हमने जानी॥
राजा ने मुँह से उपरोक्त कविता कही ही थी कि नाई ने झट से उस्तरा जमीन पर रख दिया और हाथ जोड़कर राजा से कहा-
हा…हाँ…अन्नदाता, मंत्री ने कहा था। राजा ने पूछा-मंत्री ने क्या कहा था? नाई ने बताया मंत्री ने कहा था कि जब तू आज राजा की हजामत बनाने जाये तो राजा का गला काट लेना। इसलिए अन्नदाता मेरा कोई कसूर नहीं है। राजा ने मंत्री को बुलाकर उससे पूछा -क्यों मंत्रीजी तुमने इस कालिया नाई को मेरा गला काटने की आज्ञा दी है।
 मंत्री ने बहुत इंकार किया परन्तु राजा ने उसकी एक न सुनी। राजा ने मंत्री को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। नाई को इनाम देकर कहा कि भविष्य में महल में कदम न रखना। नाई यह सुनकर राजा को प्रणाम कर चला गया।
इस दृष्टान्त से सिद्ध होता है कि जिसे परब्रह्म परमेश्वर जीवित रखना चाहता है, उसका इस संसार में कोई बाल बाका भी नहीं कर सकता। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को भगवान की भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिए और उससे स्नेह भी करना चाहिए।
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