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preet usi se kijiye jo od nibhave

kabir

Kabir ke Shabd

प्रीत उसी से कीजिये, जो ओड़ निभावै।
बिना प्रीत का मानवा, कहीं, ठौर न पावै।।
नाम स्नेही जब मिले, तब ही सत्त पावै।
अजर अमर घर ले चलो, भँव नहीं आवै।।
जो पानी दरयाव का दूजा न कहावै।
हिल मिल एकै हो रहा, सद्गुरु समझावै।।
दास कबीर विचार कै कह कह समझावै।।
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