Prerak Prasang (प्रेरक प्रसंग)
:- जीवन में कई बार ऐसा होता है की हमारे स्तर से छोटे भी हमारे गुरु बन
जाते हैं। आज हम आपको ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग बता रहे है जब एक संत एक
वेश्या को अपना गुरु बना लेते है।
एक बड़े पहुंचे सिद्ध संत थे। दूर-दूर तक उनकी ख्याति फैली हुई थी। लोग
उन्हें गुरु बनाने, ज्ञान लेने दूर-दूर से आते थे। एक बार, एक वेश्या भी
आई। उसने संत से अकेले में मिलने की प्रार्थना की तो संत ने लोकापवाद के डर
से मना कर दिया। वेश्या को खाली हाथ लौटना पड़ा। वह फिर गई, संत ने दूसरी
बार, फिर तीसरी बार, चौथी बार, इस तरह उसे बार-बार लौटाते रहे।
वेश्या ने भी आना बंद नहीं किया। वह नित्य नियम से आती और अकेले में
मिलने की प्रार्थना करती। बहुत दिनों तक यह क्रम चलता रहा। एक दिन संत
झल्ला गए। गुस्से में आकर उन्होंने वेश्या से कह दिया कि तू अधर्म का कार्य
करने वाली तू क्या जाने धर्म क्या होता है? तू वेश्या है, मैं तुझसे अकेले
में मिलूंगा तो लोग मेरे ही पास आना बंद कर देंगे। वेश्या बोली मैं तो
आपको गुरु बनाना चाहती हूं, इसलिए आपके पास आना चाहती हूं।
संत ने कहा- मैं एक वेश्या को अपनी शिष्य नहीं बना सकता। वेश्या ने कहा
कोई बात नहीं, आप न बनाएं। मैं तो आपको अकेले में इसलिए बुला रही थी कि
शिष्या बनने पर मुझे आपको गुरुदक्षिणा देनी होगी। मेरी पाप की कमाई तो आप
लेंगे नहीं लेकिन मेरे पिताजी एक मजदूर थे और मैं भी उनके साथ मजदूरी करने
जाती थी। वहां हमारे मालिक ने मेरी मेहनत से खुश होकर मुझे एक रुपया दिया
था।यह मेरी खरी कमाई है।
बस, यही एक रुपया आपको अर्पण करने आई थी। आपके कई भक्त लाखों का दान कर
रहे हैं, उस बीच यह एक रुपया देने में मुझे लज्जा आ रही थी। वेश्या की बात
सुन वह संत अवाक रह गया। वेश्या का धैर्य और धर्म के प्रति उसका सम्मान
देखकर वे दंग रह गए। वेश्या उन्हें गुरु बनाने आई थी लेकिन संत ने उसे अपना
गुरु बना लिया। संत ने कहा- तेरा धैर्य सबसे श्रेष्ठ है। मैं तुझे
लौटाते-लौटाते थक गया, गुस्सा हो गया लेकिन तेरा धैर्य नहीं टूटा।
ऐसा ही एक प्रसंग भगवान दत्तात्रेय का है जिन्होंने अपने जीवन में 24
गुरु बनाए जिसमे कीट, पक्षी और जानवर तक शामिल है। उन्होंने जिससे भी कुछ
सीखा उसे अपना गुरु माना। सम्पूर्ण कहानी यहाँ पढ़े – भगवान दत्तात्रेय और उनके 24 गुरु