अग्रियो द्वारा उपदेश
कमल का पुन्न उपकोसल सत्यकाम जबाला के यहाँ ब्रह्मचर्य ग्रहण करके अध्ययन करता था । बारह वर्षों तक उसने आचार्य एव अग्रियो की उपासना की ।आचार्य ने अन्य सभी ब्रह्मचारियो का समावर्तन संस्कार कर दिया और उन्हें घर जानेकी अाज्ञा दे दी । केवल उपकोसलं-को ऐसा नहीं किया ।
उपकोसल के मनमें दुख हुआ गुरुपत्नी को उसपर दया आ गयी उसने अपने पति से कहा—” इस ब्रह्मचारी ने
बडी तपस्या की है, ब्रह्मचर्य के नियमो का पालन करते हुए विद्याध्ययन किया है । साथ ही आपकी तथा अग्रियो की विधिपूर्वक परिचर्या की है ।
अतएव कृपया इसको उपदेश कर इसका भी समावर्तन का दीजिये अन्यथा अग्रि आपको उलाहना देंगे । पर सत्यकाम ने बात अनसुनी कर दी और विना कुछ कहे ही वे कहीं अन्यत्र यात्रा मे चले गये ।
उपकोसलं को इससे बड़ा क्लेश हुआ । उसने अनशन आरम्भ किया। आचर्य पत्नी ने कहा -‘ब्रह्मचारी ! तुम
भोजन क्यों नहीं करतें हैं ‘ उसने कहा -माँ मुझे बड़ा मानसिक क्लेश है, इसलिये भोजन नहीं करूँगा । ‘
अग्रियो ने सोचा -” इस तपस्वी ब्रह्मचारी ने मन लगाकर हमारी बहुत सेवा की है । अतएव उपदेश’ करके इसके मानसिक क्लेश को मिटा दिया जाय ‘ ऐसा विचार करके उन्होंने उपकोसल को ब्रह्मविद्या का यथोचित उपदेश
दे दिया । तदनन्तर कुछ दिनों बाद उसके आचार्य “स्तय-काम यात्रासे लोटे । इधर उपकोसल का मुखमण्डल ब्रह्म तेजसे देदीप्यमान हो रहा था आचर्य ने पूछा” सौम्ये तेरा मुख ब्रह्मवेत्ता-जैसा दीख रहा है ; बता, तुझे किसने
ब्रह्मा का उपदेश किया है ‘ उपकोसल ने बड़े सकोच से सारा समाचार सुनाया । इसपर ।इस पर आचर्य ने कहा यह सब उपदेश तो अलौकिक नहीं हैं । अब मुझसे उस आलौकिक ब्रह्मत्व का उपदेश सुन, जिसे भली प्रकार जान लेने- पऱ-साक्षात् कर लेने पर पाप-ताप प्राणी को उसी प्रकार स्पर्श नहीं कर पाते, जैसे कमलके पत्ते की जल |
इतना कहकर आचार्य ने उपकोसल को ब्रह्मत्व का रहस्यमय उपदेश किया और समावर्तन-सत्कार करके उसे
घर जानेकी आज्ञा दे दी ।