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शास्त्री जी पर कृपा-Pleased on shastriji

शास्त्री जी पर कृपा

एक शास्त्री जी भक्त थे। वे नाव पर गोकुल से मथुरा को चले। साथ कुछ बच्चे और स्त्रिया भी थी । नौका उलटे प्रवाह की और खींची जा रही थी। इतने में ही आकाश मे काली घटा उठी, बादल गरजने लगे और यमुना- जी के तटो पर मोर शोर मचाने लगे। देखते-ही – देखते जोर से हवा चलने लगी और घनघोर वर्षा होने लगी। नाव ठहरा दी गयी।

Please on Shastri Ji Awesome Pauranik Katha From Sat katha Ank

मल्हो ने कहा- तुम लोग सामने बरसाने के पुराने श्री राधा जी के मन्दिर मे धीरे-धीरे पैदल चले आओ। हम नाव् लेकर वही तैयार रहेगे । शास्त्री जी की कमर मे चार सौ के नोट थे, कुछ रुपये और पैसे थे ! उन्होंने रक्षा की दृष्टि से कसकर कमर बॉध ली और नाव से उतरकर चलने लगे । मन्दिर वहा से एक मील की दूरी पर था। नोट भीग न जाय इसलिये वे मन्दिर की ओर तेजी से चलने लगे । किनारे का रास्ता बीहड था। चारो ओर जल भर जाने से पगडडियों दिखायी नहीं देती थीं। इसलिये बिना ही मार्ग के वे पानी मे छप्-छप् करते आगे बढ़े जा रहे थे। मन मे रह-रहकर श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की स्मृति होने लगी। धीरे-धीरे मन तल्लीन हो गया। वे मार्ग भूलकर कहीं के कहीं निकल गये । मन्दिर की बात याद नहीं रही । सामने एक बडा टीला था, वे सहज ही उस पर चढ़ गये। 
थकान जाती रही। इतने मे बदलो की गडगडाहट- के साथ जोर से बिजली चमकी, उनकी ऑँखे बद हो गयी । वे वहीं रुक गये। कुछ क्षणों के बाद ऑखे खुलने पर उन्होंने देखा वर्षा कम हो गयी है और नीचे मैदान में अत्यन्त सुन्दर तथा हुष्ट-पुष्ट गौएँ हरी घास चर रही है । उनके मन मे आया इन्ही गौओ को हमारे प्यारे गोपाल चराया करते थे, बे अब भी यहीं कहीं होंगे। वे इन्हीं विचारो मे थे कि हठात् उनके मन मे नीचे उतरने की आयी, मानो कोई अज्ञान शक्ति उन्हें प्रेरित कर रही हो। नीचे उतरते ही उन्होने देखा-सामने थोडी ही दूर पर सात या आठ वर्ष का, केवल लगोटी पहने, हाथ मे छोटी- सी लकुठी लिये, वर्षा के जल मे स्नान किया हुआ, श्याम. वर्ण, मन्द-मन्द मुसकराना हुआ गोप बालक उनकी ओर देखता हुआ अंगुली के इशारे से उन्हे अपनी ओर बुला रहा है।
शास्त्री जी ने समझा-कोई गरीब ग्वाले का लड़का है, इसे दो-चार पैसे दे देने चाहिये  परतु पैसा निकालने- मे बडी अडचन थी, क्योकि पैसे नोट और रुपयो के साथ ही कमर मे बंधे थे तथा यहाँ एकान्त था। वे कुछ दूर तो बालक की ओर आगे बढ़े, फिर सहसा उनके पैर रुक गये। वह बालक मुसकराता हुआ बोल-पण्डित जी ! देखो, तुम्हारी रुपये की गॉठ पूरी तो है दो चार पैसे लेने वाले ब्रज मे बहुत मिलेगे, उन्हें दे देना । मैं तो इन गौओ के दूध से ही प्रसन्न रहता हूँ । बालक की अमृतभरी वाणी से शास्त्री जी विमुम्ध हो गये। वे निर्निमेष नेत्रों से बालक की ओर देखने लगे। साथ ही उन्हें आश्चर्य हुआ कि बालक को मेरी कमर मे बँधे रुपयो का तथा मेरे मन की बात का पता कैसे लग गया।
फिर बह बालक बोला-देखो । वह सामने मन्दिर दिखायी पड रहा है, तुम्हारी नाव वहाँ पहुॅच गयी है । तुम इधर कहाँ जा रहे हो। मथुरा जी की सड़क यहॉँ से दूर है और यह जगह भयानक है। तुम तुरंत यहाँ से चले जाओ। शास्त्री जी तो बेसुध-से थे । इतने मे वह बालक हॅँसता हुआ मुडकर जाने लगा । शास्त्रीजी मन्त्रमुम्ध की तरह उसके पीछे-पीछे चले । पीछे-आगे देख बालक ने कहा-जाओ, जाओ, इधर तुम्हारा क्या काम है ? जाओ, अभी घूमो इतना कहकर बालक उन गौओं के साथ अन्तर्धान हो गया। शास्त्री जी होश में आये। उन्होंने बहुत खोजा, पर बालक और गौओ का पता नहीं लगा। वे हतास होकर मन्दिर पर पहुँचे ।उन्हे ऐसा प्रतीत हुआ-मानो किसी ने उनका सत्वस्त हरण कर लिया हो।
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